Book Title: Jo Sahta Hai Wahi Rahita Hai
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 168
________________ १५६ जो सहता है, वही रहता है - करना नहीं है। हृदय परिवर्तन से हमारा तात्पर्य निषेधात्मक भावों को समाप्त कर विधेयक भावों को जगाना है। प्रत्येक व्यक्ति के भीतर दो धाराएँ प्रवाहित होती हैं। एक है निषेधात्मक भावों की धारा और दूसरी है विधेयात्मक भावों की धारा । घृणा, ईर्ष्या, द्वेष, रोग, ये सारे निषेधात्मक भाव हैं। इनकी एक धारा प्रवाहित हो रही है। मैत्री, अहिंसा, सहिष्णुता, आर्जव, मार्दव, ये विधेयात्मक भाव हैं। इनकी भी एक धारा प्रवाहित हो रही है । ये दोनों धाराएँ प्रत्येक आदमी में प्रवाहित होती रहती हैं, पर हमारी इस दुनिया में निषेधात्मक भावों की धारा को प्रकट होने का बहुत अवसर मिलता है, निमित्त अनेक मिल जाते हैं । पग-पग पर इतने निमित्त हैं कि निषेधात्मक भाव सहजता से उत्पन्न हो जाते हैं । हमारा कोई भी आचरण या व्यवहार आकस्मिक नहीं होता। किसी को गुस्सा आता है तो हम सोचते हैं कि यह आकस्मिक है, पर कोई आवेश आकस्मिक नहीं आता । वह कोई आकस्मिक घटना नहीं है । कोई घृणा करता है, वह आकस्मिक नहीं है । हमारे भीतर वे भाव लगातार प्रवाहित हो रहे हैं । उनकी धारा चलती रहती है। निमित्त मिलने पर वे भाव प्रकट होते हैं। उनकी अभिव्यक्ति होती है, उत्पत्ति नहीं होती। वे मात्र अभिव्यक्त होते हैं, उत्पन्न नहीं होते । वे एक रूप से नही जन्मते । वे जन्मे हुए ही हैं । निमित्त मिलता है और वे अभिव्यक्त हो जाते हैं। पदार्थ के पर्याय प्रत्येक पदार्थ के साथ व्यक्त और अव्यक्त दो पर्याय जुड़े रहते हैं अव्यक्त पर्याय व्यक्त हो जाता है और व्यक्त पर्याय अव्यक्त हो जाता है। यह भावधारा अव्यक्त है, सूक्ष्म है। इसे निमित्त मिलता है और यह व्यक्त हो जाती है । व्यक्त होने पर हम इसे आचरण कह देते हैं। किसी भी आचरण एवं व्यवहार की व्याख्या इनके स्वरूप के आधार पर नहीं की जा सकती, भावधारा के आधार पर की जा सकती। आचरण से हमें पता चल जाता है कि व्यक्ति में किस प्रकार की भावधारा प्रवाहित हो रही है । जो व्यक्ति क्षण-क्षण में क्रोध करता है, उत्तेजित होता है, भयभीत होता है, अहंकारग्रस्त होता है, तो मान लेना चाहिए कि उसमें उस समय निषेधात्मक भावधारा प्रवाहित हो रही है और वह व्यक्ति उसी के प्रवाह में प्रवाहित होकर इन भावावेशों से आविष्ट हो रहा है। कोई आदमी सहिष्णु है, क्षमाशील और विनयी है, अनुशासित और अहंकारशून्य है, मैत्री और प्रेम में परिपूर्ण है, तो मान लेना चाहिए कि उसमे उस समय विधायक भावधारा बह रही है । यह सारा आकस्मिक नहीं होता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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