Book Title: Jo Sahta Hai Wahi Rahita Hai
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 169
________________ प्रकृति एवं विकृति १५७ यदि आकस्मिक होता तो हर कोई ऐसा कर लेता । व्यक्ति ने भीतर की धारा में जाकर विधेयक भावधारा को सक्रिय बनाने का प्रयत्न किया है । वह भावधारा इस दिशा में प्रवाहित है और वह निमित्त पाकर प्रकट हो जाती है । बड़ा आश्चर्य होता है । विरोधी निमित्तों में भी दोनों प्रकार की घटनाएँ मिलती हैं। अनुकूल निमित्त में घटना घटित होती है, आश्चर्य नहीं होता । विरोधी निमित्त, जैसे निमित्त है क्षमा का और जाग जाता है क्रोध, निमित्त है क्रोध का और जाग जाती है क्षमा । बड़े आश्चर्य की बात है । 1 एक सुंदर कहानी है। शीतलादेवी का मंदिर था। एक कौआ आकर बैठ गया। शीतलादेवी बोली, 'अरे, यहाँ कैसे आना हुआ ? क्यों बैठे हो यहाँ ?' कौआ बोला, 'क्या यहाँ कोई आ नहीं सकता ? क्या इस स्थान पर तुम्हारा ही अधिकार है ? ' कौआ बैठा रहा। वह बीटे करने लगा। अनेक बार बींट की। शीतला बोली, 'अरे भाई कौआ ! आज तो बहुत ठंडीठंडी बीट कर रहा है।' कौए ने उत्तेजित होकर कहा, 'जो गर्म बींट करे उसे रख, मुझे यहाँ नहीं रहना है।' कौआ उड़ गया । शीतलादेवी बहुत सीधी-साधी बात कर रही थी। वह अपने आप में शांत थी, पर कौआ उत्तेजना से भरा हुआ बात कर रहा था। ऐसा बहुत बार होता है । क्षमा का निमित्त भी क्रोध जगा देता है और क्रोध के निमित्त से भी क्षमा जाग जाती है। क्रोध को उभारने का प्रयत्न होता है, पर क्रोध उभरता ही नहीं। तीर्थंकरों और साधकों की अनेक घटनाएँ हमारे समक्ष हैं, जिनमें क्रोध और उत्तेजना को उभारने का प्रयत्न किया गया, पर वे तीर्थंकर और साधक क्षमा की ऊर्जा बिखेरते रहे । वे कुपित हुए ही नहीं। बार-बार प्रयत्न करने पर भी, प्रयत्न करने वाले को सफलता नहीं मिली । क्या कारण है कि विरोधी निमित्तों के होने पर भी भिन्न प्रकार की घटनाएँ हो जाती हैं ? इन सभी बातों से यह पता चलता है कि भीतर जिस प्रकार की भावधारा होती है, उसी प्रकार का आचरण अभिव्यक्त होता है । वहाँ निमित्त गौण हो जाते हैं। उपादान का स्थान पहला और निमित्त का दूसरा है। भावधारा उपादान है। यदि हम भीतर की भावधारा को मोड़ देते हैं तो वहाँ बाहर के निमित्त बहुत प्रभाव नहीं डाल सकते। जब तक व्यक्ति ध्यान के द्वारा भीतर प्रवेश नहीं करता, भीतरी गहराइयों में नहीं उतरता और अपने अन्तःकरण को पहचानने का प्रयत्न नहीं करता, तब तक निमित्त हावी रहता है और तब Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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