Book Title: Jo Sahta Hai Wahi Rahita Hai
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 177
________________ दिशा और दशा पसीने से नहा लिया । श्रम बहुत किया, पर सफल नहीं हुआ। ज्यों-ज्यों दौड़ता है, छाया आगे सरक जाती है । निराश हो गया। अचानक सामने संत आ गए। उन्होंने पूछा, 'अरे हिम्मत ! यह क्या? इतने परेशान क्यों हो रहे हो ?' वह बोला, 'महाराज ! आज तक मैं कभी अपने काम में असफल नहीं हुआ। आज सफलता दूर भाग रही है। परेशान हूँ । मार्गदर्शन करें। मैंने अपनी छाया को पकड़ने का वादा किया है, पर अभी तक इसे पकड़ नहीं पाया हूँ । आप उपाय बताएँ ।' संत बोले, 'बहुत सीधी बात है। तुम अपना मुँह मोड़ लो ।' उसने मुँह मोड़ा, दिशा बदली। जैसे ही दिशा बदली, छाया पकड़ में आ गई। जहाँ खड़ा है, वहीं उसकी छाया स्थिर है। जब दिशा बदलती है, तब छाया पकड़ में आ जाती है। आदमी छाया और माया के लिए दौड़ता है। पर न छाया पकड़ में आती है और न माया पकड़ में आती है । सब आगे से आगे बढ़ती जाती हैं। यह ऐसी मरीचिका है, जिसे कभी पकड़ा नहीं जा सकता। जैसे ही दिशा का परिवर्तन होता है, छाया भी पकड़ में आ जाती है, माया भी पकड़ में आ जाती है और काया भी पकड़ में आ जाती है। सब कुछ पकड़ में आ जाता है । १६५ मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जिसने दिशा को बदला है, मौलिक वृत्तियों का परिष्कार किया है, हृदय का परिवर्तन किया है, चेतना का रूपान्तरण किया है। इन सारे संदर्भों में कहा जा सकता है कि मनुष्य की सबसे बड़ी उपलब्धियाँ हृदय का परिवर्तन, चेतना का रूपान्तरण और मौलिक मनोवृत्तियों का परिष्कार है । हृदय-परिवर्तन के आधार पर समाज में नैतिक मूल्यों की प्रतिष्ठा हुई । किसी और प्राणी में नैतिक मूल्य जैसा कोई तत्त्व नहीं होता। यह आवश्यक भी नहीं है, क्योंकि वहाँ बुद्धि का इतना विकास नहीं हुआ है । जहाँ बुद्धि का विकास नहीं होता, वहाँ नैतिक मूल्यों की स्थापना नहीं हो सकती । बुद्धि के द्वारा अनैतिक मूल्यों की भी स्थापना हो सकती है। बेचारे दूसरे प्राणियों में बौद्धिक विकास नहीं है, तो अनैतिक मूल्य भी नहीं है। वे कभी मर्यादा का अतिक्रमण नहीं करते। वे सदा निश्चित मर्यादा में चलते हैं। अतिक्रमण नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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