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जो सहता है, वही रहता है
किया । भय का परिष्कार अभय में होता है। किसी भी प्राणी ने अभय का विकास नहीं किया । पशु आज भी उतने ही डरते हैं, जितना पहले डरते थे । उनमें उतनी ही काम-भावना है, जितनी पहले थी । युयुत्सा का परिष्कार सहिष्णुता में होता है। किसी भी प्राणी ने यह परिष्कार नहीं किया । पशु जितने पहले लड़ते थे, आज भी उतने ही लड़ते हैं। भौंकने वाला भौंकता है, लड़ने वाला लड़ता है। किसी भी देश के कुत्तो ने यह विकास नहीं किया कि उन्होंने भौंकना बंद कर दिया हो, परस्पर लड़ना बंद कर दिया हो । एक मोहल्ले का कुत्ता जब दूसरे मोहल्ले में जाता है, तब लड़ाई न होती हो, ऐसा न सुना, देखा । संभव ही नहीं है । आज तक इस वृत्ति में परिष्कार नहीं हुआ । चाहे कुत्ता भारत का हो, अमेरिका का हो या रूस का हो, सबकी यह मनोवृत्ति समान है। इसमें कोई अंतर नहीं है ।
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दिशा से दशा का परिवर्तन
मनुष्य ने अपनी मौलिक मनोवृत्ति का परिष्कार किया है। मनोविज्ञान के संदर्भ में हृदय परिवर्तन का अर्थ हो सकता है, 'मौलिक मनोवृत्तियों का परिष्कार' । जो मौलिक मनोवृत्तियों का परिष्कार है, वह चेतना का परिवर्तन है, हृदय का परिवर्तन है । दिशा बदल जाना साधारण बात नहीं है। आदमी एक ही दिशा में चलता है तो एक ही प्रकार का आचरण और व्यवहार होता है । जब दिशा बदलती है, तब सारी स्थितियाँ बदल जाती हैं, आचरण और व्यवहार बदल जाता है ।
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हिम्मत सिंह पटेल सौराष्ट्र का निवासी था । वह हट्टाकट्टा और स्वस्थ था । उसे अपने शारीरिक बल पर गर्व था । वह मानता था कि ऐसा कोई भी कार्य नहीं है, जो मैं न कर सकूँ । एक दिन एक व्यक्ति ने कहा, 'हिम्मत सिंह ! तुम शक्तिशाली हो । सब कुछ कर सकते हो, तो एक काम कर दिखाओ। वह काम है स्वयं की छाया को पकड़ना । सूरज उदय हो रहा है। जाओ, अपनी छाया को पकड़ो।' वह फौरन मान गया, बोला, 'अभी पकड़ता हूँ। यह भी कोई काम है !' वह दौड़ा छाया को पकड़ने। जैसे-जैसे दौड़ता है, छाया आगे बढ़ती जाती है । अपनी छाया को पकड़ने की दौड़ में वह
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