Book Title: Jo Sahta Hai Wahi Rahita Hai
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 175
________________ १६३ दिशा और दशा मौलिक मनोवृत्तियाँ __ मानव-विकासशास्त्रियों का मत है कि दो पैरों पर खड़ा होना, दो हाथों को खाली रखना, मनुष्य की सबसे बड़ी उपलब्धि है। रीढ़ के आधार पर खड़ा होना, दोनों हाथों को काम करने का अवसर देना, एक महान उपलब्धि है। यदि मनुष्य चौपाया (चार पैरों वाला) होता तो उसका मूल्य गाय-भैंस से अधिक नहीं होता। मनुष्य की एक और बड़ी उपलब्धि दूसरे ग्रहों पर मनुष्य जाति की खोज भी है। इस पूरे ब्रह्माण्ड में मनुष्य कहाँ-कहाँ है, यह खोज हो रही है और यदि इसे सफलतापूर्वक खोज लिया गया, तो यह मानव की महान उपलब्धि होगी। प्रश्न एक था, पर उसके समाधान में अनेक विचार, अनेक धारणाएँ सामने आईं। इन सभी धारणाओं के संदर्भ में अपना अभिमत प्रकट करना चाहता हूँ कि मनुष्य की सबसे बड़ी उपलब्धि है-हृदय का परिवर्तन । आज तक मनुष्य की जो प्रतिमा बनी है, मनुष्य और पशु के बीच जो भेद की रेखा खींची गई है, उसमें सबसे महत्त्वपूर्ण धारणा है 'हृदय का परिवर्तन' । कोई बड़े से बड़ा व अक्लमंद पशु और अन्य प्राणी भी ऐसा परिवर्तन नहीं जानते। मनुष्य ने हृदय-परिवर्तन के सिद्धान्त की स्थापना की है और इसका प्रयोग किया है। इसमें वह सफल हुआ है। मनोविज्ञान ने कुछ मौलिक मनोवृत्तियाँ मानी है। उनकी संख्या में मतभेद है, फिर भी दो-चार मनोवृत्तियाँ सर्वसम्मत हैं। आहार की खोज, काम की तृप्ति, पलायन और युयुत्सा, ये मौलिक मनोवृत्तियाँ हैं। ___आहार की खोज मौलिक मनोवृत्ति है। इसका संवेग है, 'भूख' । आदमी को भूख लगती है, तब वह आहार की खोज करता है। काम की तृप्ति मौलिक मनोवृत्ति है, इसका संवेग है 'मैथुन' । मनुष्य संतति पैदा करता है। हर प्राणी करता है। पलायन मौलिक मनोवृत्ति है। इसका संवेग है 'मान' । युयुत्सा का अर्थ है लड़ने की इच्छा। आदमी लड़ने में रस लेता है। ये कुछ मौलिक मनोवृत्तियाँ हैं। इनका परिष्कार हर आदमी कर सकता है। दूसरा कोई प्राणी ऐसा नहीं कर सकता। काम की वृत्ति का परिष्कार ब्रह्मचर्य में होता है। किसी भी प्राणी या पशु ने ब्रह्मचर्य का विकास नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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