Book Title: Jo Sahta Hai Wahi Rahita Hai
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 191
________________ दिशा और दशा १७९ दिखाने वाला धर्म भी चिरजीवी नहीं रह सकता। वही धर्म स्थायी आकर्षण पैदा कर सकता है, जो वर्तमान की समस्या को सुलझाता है। जीवन है समन्वय वर्तमान काल की एक अजस्र धारा है। जीवन भी एक शाश्वत प्रवाह है। वह जिया जा रहा है, लेकिन समझा नहीं जा रहा है। शरीर अपना काम करता है। इंद्रियाँ, प्राण, मन और चेतना ये सब अपना-अपना काम करते हैं। हम कार्य को समझते हैं, उसके समन्वय को नहीं समझते। शरीर, इंद्रियाँ, प्राण, मन, चेतना और समन्वय का नाम है जीवन । इनमें से कोई एक जीवन का तत्त्व नहीं है। क्या शरीर जीवन है? नहीं। क्या इंद्रियाँ जीवन हैं? नहीं। क्या प्राण, मन और चेतना जीवन हैं? उत्तर होगा नहीं। फिर जीवन क्या है? जीवन है समन्वय । शरीर, इंद्रिय, प्राण, मन और चेतना, इनका समवाय है जीवन। अकेला पहिया कार नहीं है। इंजिन भी कार नहीं है। एक्सीलेटर और ब्रेक भी कार नहीं है। इन सबका योग है कार। जीवन का लक्ष्य बहुत लोग पूछते हैं जीवन का लक्ष्य क्या है ? इसका उत्तर बहुत सीधा भी है और बहुत जटिल भी है। व्यवहार नय की भाषा में लक्ष्य है विकास, आनंद का सुख। निश्चयनय की भाषा में लक्ष्य है स्वतंत्रता। मनुष्य बुद्धिमान प्राणी है। वह अपने लक्ष्य का निर्धारण करता है, उसकी पूर्ति के लिए साधनसामग्री जुटाता है। शरीर, इंद्रियाँ, प्राण और मन, ये लक्ष्य की पूर्ति के साधन हैं। साध्य है चेतना, चेतना का विकास, चेतना की स्वतंत्रता । अपने आप में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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