Book Title: Jo Sahta Hai Wahi Rahita Hai
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 170
________________ १५८ जो सहता है, वही रहता है आदमी उसी के प्रभाव में जीने लगता है। जिस व्यक्ति ने ध्यान के द्वारा अपने भावों को पहचान लिया है, उनके साथ सम्पर्क स्थापित कर लिया है, वहाँ निमित्त गौण हो जाते हैं और भाव प्रधान बन जाते हैं। प्राचीन साहित्य में दस प्रकार के धर्म, चार या बारह प्रकार की अनप्रेक्षाएँ तथा अनेक प्रकार के आलंबन बतलाए गए हैं। उनके प्रतिपादन का कारण क्या था? वह यही तो था कि साधक इन माध्यमों से भावों के साथ सीधा सम्पर्क स्थापित कर सके, भावधारा तक पहँच सके और जो शुद्ध भावधारा है, विधायक भावधारा है, उसे जगा सके। भावधारा ध्यान करने वाले और ध्यान न करने वाले व्यक्ति तथा धर्म की आराधना करने वाले और न करने वाले व्यक्ति में यदि कोई भेद की रेखा खींचनी हो तो यही खींची जा सकती है कि जो अपने प्रयत्नों के द्वारा विधायक भावों की धारा को सक्रिय करता है, प्रवाहित करता है, वह ध्यानी होता है, धार्मिक होता है, आराधक होता है। जो ऐसा नहीं कर पाता, जो निषेधात्मक भावों की धारा में विशेष रस लेता है, वह अधार्मिक होता है, वह ध्यान करने वाला नहीं होता। यह धार्मिक और अधार्मिक की, ध्यानी और अध्यानी की मनोवैज्ञानिक पहचान है। इसी के आधार पर मनुष्य के सारे आचरणों और व्यवहारों की व्याख्या की जा सकती है। आज लोग परेशान हैं, इस दुनिया में हिंसक घटनाएँ बहुत घटित हो रही हैं, झूठ बहुत बोला जा रहा है, चोरियाँ और डकैतियाँ अधिक हो रही हैं, बलात्कार और व्यभिचार बढ़ा है, ईर्ष्या और द्वेष का बोलबाला है, अपराध प्रतिदिन बढ़ रहे हैं, उपद्रव और आक्रामक वृत्तियाँ अनियंत्रित हो रही हैं, साम्राज्यवादी मनोवृत्ति फैल रही है, इसका क्या कारण है? भावधाराओं के आधार पर यह सुगमता से कहा जा सकता है कि आज का आदमी निषेधात्मक भावों में अधिक जी रहा है। प्रत्येक मनुष्य में विधायक और निषेधात्मक दोनों भावधाराएँ सतत प्रवाहित हो रही हैं। निषेधात्मक भावों की अधिक सक्रियता से हिंसा को बल और बढ़ावा मिलता है और तब समाज में ये वृत्तियाँ अधिक पनपती हैं। - स्वर्णिम सूत्र दूसरों के सहारे चलो पर अपने पैरों की ताकत कम मत करो। दूसरों का सहयोग तभी मिलेगा जब तुम्हारे पैर ताकतवर होंगे। - - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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