Book Title: Jo Sahta Hai Wahi Rahita Hai
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 132
________________ १२० जो सहता है, वही रहता है जा सकता है? लोग इस भाषा में नहीं सोचते कि अहंकार को मिटाया जा सकता है या कम किया जा सकता है। वे सोचते हैं कि क्रोध तो स्वभाव है, वह मिटने वाला नहीं है, अहंकार मनुष्य का स्वभाव है, वह कभी मिटने वाला नहीं है। ध्यान का अभ्यासी व्यक्ति सबसे पहले इस मिथ्या धारणा को तोड़ता है। जो इस धारणा को नहीं तोड़ सकता, वह ध्यान का अच्छा अभ्यासी नहीं हो सकता। ध्यान का अभ्यास करने वाले को पहला पाठ पढ़ना होगा कि आदमी बदल सकता है, उसका स्वभाव बदल सकता है। यदि आदमी न बदले, स्वभाव न बदले तो ध्यान को ही बदल देना चाहिए, छोड़ देना चाहिए। फिर ध्यान का कोई प्रयोजन नहीं। ध्यान की सार्थकता तो यही है कि चित्त इतना एकाग्र और निर्मल बन जाए कि उसमें जो बुरे स्वभाव के परमाणु जमे हुए हैं, वे सारे के सारे धुलकर बह जाएँ। चित्त निर्मल हो जाए। उच्च लक्ष्य के पथ पर लक्ष्य हमेशा ऊँचा बनाएँ। लक्ष्य और योजना कभी छोटे नहीं होने चाहिएँ। छोटे लक्ष्य और छोटी योजनाओं से उत्साह नहीं जागता। वे कभी पूर्णता को प्राप्त नहीं होते। बड़ी योजनाएँ और बड़े लक्ष्य पूरे होते हैं, क्योंकि उनके पीछे उत्साह और प्रेरणा का बल होता है। विश्व के प्रख्यात चिंतकों ने भी यही कहा कि ऊपर की ओर चलो, लक्ष्य को बड़ा बनाते चलो। यदि एक मुनि यह सोचता है कि मैं साधु बन गया, सब कुछ हो गया तो वह बड़ी भूल करता है। साधु बनना यदि लक्ष्य है तो साधु-दीक्षा के साथ ही उसकी प्राप्ति हो जाती है। साधना करने या वीतराग बनने की जरूरत ही नहीं है। एक लक्ष्य महावीर ने कहा, 'कुछ साधु ऐसे हैं, जो साधु होकर भी अवसाद को प्राप्त होते हैं।' एक मुनि सोचता है कि साधु जीवन बहुत कठिन है। विहार करना, पैदल चलना, सर्दी-गर्मी को सहन करने के अलावा भी अनेक कष्ट हैं। ऐसा सोचने वाला मुनि अवसाद को प्राप्त होता है। प्रश्न है, अवसाद क्यों होता है? महावीर ने इसका कारण बतलाया, 'जो अनात्मप्रज्ञ हैं, जिन्होंने आत्म-प्राप्ति का लक्ष्य नहीं बनाया है, उन्हें विषाद होता है।' साधु का लक्ष्य है आत्मा का उदय । प्रश्न हो सकता है कि श्रावक का लक्ष्य क्या है? श्रावक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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