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अपना आलंबन स्वयं बनें
१२३ इस कार्य से आत्मा का कुछ बिगड़ा है या नहीं? हमारे कार्य को कोई देखता है या नहीं, हमें कोई कुछ कहता है या नहीं? यह उतना महत्त्वपूर्ण नहीं है, जितना इस कसौटी के सामने बने रहना है। जो इस कसौटी को सामने रखता है, उसे कोई दुःखी नहीं बना सकता। महावीर ने महत्त्वपूर्ण सूत्र दिया, 'आत्मप्रज्ञ बनो।' जब तक आत्मप्रज्ञ नहीं बनेंगे, विषाद से मुक्ति नहीं मिलेगी। धर्म के क्षेत्र में प्रवेश करने वाला सबसे पहले आत्मा को जाने। जो आत्मवादी हैं, परलोक को मानते हैं, कर्म एवं कर्मफल को मानते हैं, वे आत्मा के साथ जुड़े रहने का दर्शन सहज ही प्राप्त कर सकते हैं। लक्ष्यपथ का चयन
एक बीमार व्यक्ति से पूछा जाए, 'तुम चिकित्सा करा रहे हो। चिकित्सा का ध्येय क्या है?' उत्तर होगा-स्वास्थ्य लाभ । स्वस्थ रहने के लिए चिकित्सा कराई जाती है, स्वस्थ बनाने के लिए डॉक्टर चिकित्सा करता है।
मनुष्य की चाह है स्वास्थ्य। किन्तु बीमारियाँ कितनी हैं? एक नहीं, अनेक हैं। चिकित्सा के प्रकार भी अनेक हैं। चिकित्सा की कोई ऐसी पद्धति नहीं है, जिसमें सब रोगों की चिकित्सा एक समान विधि से की जा सके। अनेक रोग, चिकित्सा के अनेक विकल्प और अनेक औषधियाँ । ऐसी कोई एक दवा नहीं है, जो सब रोगों के लिए काम आए। इसीलिए चिकित्सा की पद्धति अनेकात्मक है। अनेकात्मक है ध्यान की पद्धति
ध्यान की पद्धति भी अनेकात्मक है। यदि पूछा जाए कि ध्यान का उद्देश्य क्या है? सीधा उत्तर होगा-आत्मा का दर्शन या आत्मा का स्वास्थ्य। एक है शरीर का स्वास्थ्य, दूसरा है आत्मा का स्वास्थ्य। हमारा ध्येय है आत्मा का स्वास्थ्य। आत्मा स्वस्थ रहे, निरोग रहे, जो रोग हैं वे मिट जाएँ। एक शब्द में यह अंतर संभव है, किन्तु हमें विभक्त करना होगा। एक शब्द से काम नहीं चलेगा। जितने रोग के प्रकार हैं, उतने ही प्रकार औषधियों के होंगे। आसन का एक उपयोग है ध्यान में सहायता करना, तो दूसरा उपयोग है शरीर को स्वस्थ बनाए रखना। आसन का एक पहलू है चिकित्सात्मक और दूसरा पहलू है ध्यानात्मक । जो लोग योग के द्वारा, आसन के द्वारा चिकित्सा करते हैं, उन्होंने
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