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जो सहता है, वही रहता है
आसनों का अलग-अलग वर्गीकरण किया है। जिसे मधुमेह है, उसे इतने आसनों का कोर्स देना है। जिसे उच्च रक्तचाप है, उसे इतना कोर्स देना है । प्रत्येक बीमारी के लिए आसनों का अलग-अलग वर्गीकरण है। इसी प्रकार ध्यान के विषय में भी हमें वर्गीकरण करना होगा ।
आत्मा का स्वास्थ्य
शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक, ये समस्याएँ आत्मा के स्वास्थ्य में बाधक हैं। शारीरिक समस्याएँ आत्मा को भी अस्वस्थ बना देती हैं। एक व्यक्ति ध्यान करना चाहता है, किन्तु शरीर से स्वस्थ नहीं है, वह ध्यान नहीं कर पाएगा । जो व्यक्ति उच्च रक्तचाप से पीड़ित है, वह ध्यान कैसे करेगा ? एक व्यक्ति हृदयरोग से पीड़ित है, वह ध्यान की गहराई में कैसे जा सकेगा ? शरीर की बहुत सारी बीमारियाँ ध्यान में बाधक बनती हैं। हमें साधना का चुनाव करना होगा, सिर्फ एक प्रयोग से काम नहीं चलेगा। पहले जितनी बाधाएँ हैं, उन्हें निरस्त करेंगे तो हम आत्मा की स्थिति तक पहुँच पाएँगे । एक में तीन
एक व्यक्ति ने अपने मित्र से कहा, 'मैं ऐसी महिला से शादी करूँगा जो मेरी तीन शर्ते पूरी करे।'
'क्या शर्तें हैं तुम्हारी ?"
'बुद्धिमती होनी चाहिए, रूपवती होनी चाहिए और मितभाषिणी होनी चाहिए।'
मित्र बोला, 'बड़े मूर्ख हो तुम ! इस महंगाई के जमाने में तीन पत्नियों का भार कैसे वहन करोगे ? एक भी महिला तुम्हें ऐसी नहीं मिलेगी, जो बुद्धिमती भी हो, रूपवती भी हो और मितभाषिणी भी हो। इस स्थिति में तीन का खर्च कैसे उठा पाओगे ?'
एक से काम नहीं चलता, इसलिए अलग-अलग प्रयोग करने होते हैं । एक ऐसा क्यों नहीं मिलता ? इसकी हम मीमांसा करें । आत्मा के साथ जुड़ा हुआ है कषाय । कषाय के दो रूप हैं - राग और द्वेष । राग ने ममकार और अहंकार का जाल बिछा रखा है । द्वेष ने शत्रुता, अप्रियता और घृणा का जाल
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