Book Title: Jo Sahta Hai Wahi Rahita Hai
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 163
________________ १५१ प्रकृति एवं विकृति आहार का संयम नहीं है, इसलिए शारीरिक, मानसिक और भावात्मक स्वास्थ्य बिगड़ रहा है, हिंसा बढ़ रही है। हिंसा और साम्प्रदायिक मनोवृत्ति के साथ शारीरिक क्रिया का गहरा संबंध है। यह सच्चाई वैज्ञानिक अनुसंधान से स्पष्ट है। शारीरिक प्रवृत्तियों का संयम किए बिना, क्या स्वस्थ समाज की रचना का स्वप्न सकार हो सकता है? वाणी का असंयम भी संघर्ष के लिए कम जिम्मेदार नहीं है। अतः स्वस्थ व्यक्ति और स्वस्थ समाज रचना के लिए अपेक्षित जीवनशैली का आधार सूत्र है-संयम । इंद्रिय का असंयम भी आर्थिक तथा अन्य अपराधों के लिए उत्तरदायी है। अध्यात्म ने हजारों-हजारों वर्ष पहले घोषणा की थी कि इंद्रिय चेतना को कभी तृप्त नहीं किया जा सकता। अतृप्ति और आसक्ति का चक्र अनेक जटिल समस्याओं का निर्माण कर रहा है। समता, संवेग और समाज स्वस्थ समाज रचना की जीवनशैली का दूसरा आधार है-समता । समता का अर्थ है संवेग संतुलन। गहन मनोविज्ञान और व्यवहार मनोविज्ञान ने मानवीय चेतना के अध्ययन का प्रबल प्रयत्न किया है। यह आत्मा या चेतना के अध्ययन का आधुनिक आयाम है। मौलिक मनोवृत्तियों और संवेग के विश्लेषण ने आंतरिक चेतना के अनेक आवरण दूर किए हैं। जीने के सिद्धान्त ने जीवन की वृत्तियों को समझने का अवसर दिया है। स्वस्थ समाज की रचना में सामाजिक और आर्थिक विषमता का मूल स्रोत है-संवेगों का असंतुलन । अहंकार और ममकार, ये दोनों संवेग विषमता के जनक हैं। क्रोध, माया, लोभ, भय, घृणा, वासना आदि के अतिरेक विषमता के पोषक हैं। इस संवेग समूह से प्रभावित जीवनशैली स्वस्थ समाज अथवा अहिंसक समाज की रचना कभी नहीं कर सकती। यदि समाजवादी और साम्यवादी शासन प्रणाली के साथ संवेग को संतुलित करने के प्रयोग जुड़े होते, तो स्वस्थ समाज की रचना को नई दिशा मिल जाती। संवेग का संतुलन संयम और समता के सिद्धान्त संवेग संतुलन की साधना किए बिना जीवनव्यापी नहीं हो सकते । अध्यात्म के क्षेत्र में संवेग नियंत्रण के अनेक प्रयोग बतलाए गए हैं। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि संवेग नियंत्रण के प्रयोगों का समुच्चय ही अध्यात्म है। संवेग नियंत्रण के लिए प्रेक्षाध्यान के प्रयोग बहुत सफल हुए हैं। उनके आधारभूत सूत्र हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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