________________
१२६
जो सहता है, वही रहता है आत्मा हमारा सबसे बड़ा ध्येय है। प्रश्न होता है, वह ध्येयतम क्यों है? सारा विश्व और विश्व के सारे पदार्थ हमारे लिए ज्ञेय हैं। ज्ञान का विषय है ज्ञेय । चेतन और अचेतन सब ज्ञेय हैं। वे ध्येय कब बनेंगे? कोई जानने वाला है तो कोई ज्ञेय बनता है। कोई ध्याता है तो कोई ध्येय बनता है। पदार्थ तो पदार्थ है। जीव का अपना अस्तित्व है, पदार्थ का अपना अस्तित्व है। पदार्थ स्वयं ज्ञेय नहीं बनता। कोई जानने वाला होता है, ज्ञाता होता है तो वह ज्ञेय बनता है। कोई पदार्थ पर ध्यान करने वाला होता है तो कोई पदार्थ ध्येय बनता है। आत्मा के होने पर पदार्थ ज्ञेय है और आत्मा के होने पर पदार्थ ध्येय है। आत्मा नहीं है तो कोई पदार्थ न ज्ञेय बनता है, न ध्येय । ज्ञेय और ध्येय, दोनों आत्मा के साथ जुड़े हैं। इसलिए जो ज्ञाता है, ज्ञान-स्वरूप है, वह हमारा ध्येय होगा। ध्येय का आदि बिंदु है आत्मा, किन्तु ध्येय तक पहुँचने के लिए ध्येय और ध्याता के बीच की दूरी को पाटना होगा। लम्बी यात्रा
ध्यान करने वाला ध्याता है और आत्मा ध्येय है। इन दोनों के बीच काफी दूरी है। ध्येय तक पहुँचने के लिए, उस दूरी को पाटने के लिए हमें बहुत लम्बी यात्रा करनी पड़ेगी, अनेक साधनाओं से गुजरना होगा। आज की चिकित्सा कितनी लम्बी हो गई है? बीमार हॉस्पिटल में जाता है। उसे सबसे पहले कहा जाता है-डायनोमेस्टिक टेस्ट होना चाहिए। कम्पाउंडर नब्ज देखता है, ब्लड् लेता है, उसकी जाँच होती है। वह ई.सी.जी. कराता है, ई.ई.जी कराता है। जाने कितने यंत्रों से उसे गुजरना पड़ता है। एक आदमी पूरे टेस्ट कराता है, तो इतना बड़ा बिल सामने आता है कि उसे देखकर ही वह घबरा जाता है। पूरी जाँच की पद्धति से गुजरने के बाद डॉक्टर दवा देगा। दवा की तालिका इतनी बड़ी होती है कि सामान्य व्यक्ति के लिए उसका बिल चुकाना भी मुश्किल हो जाता है। जरूरी है जाँच
डॉक्टर ने रोगी से पूछा, 'कहो, कैसे हो?' 'वैसे ही चल रहा है।' 'क्या दवा से ठीक नहीं हुए?' ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org