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अपना आलंबन स्वयं बनें
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करके देखें
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• समवृत्ति श्वास प्रेक्षा-संतुलन के लिए
बाएं नथुने से धीरे-धीरे लम्बा श्वास लें, कुछ क्षणों के लिए श्वास को भीतर रोके और फिर दाएं से धीरे-धीरे निकालें, और श्वास को बाहर रोके फिर दाएं से लें, भीतर रोके फिर बाएं नथुने से निकाले और बाहर रोके। श्वास रोकने में जबरदस्ती बिल्कुल न करें। श्वास के प्रति पूर्ण जागरुक रहें। प्रत्येक आवृति में चार बार श्वास संयम होता है। प्रतिदिन ९ आवृति करें। मंत्र का प्रयोग
ॐ ह्रीं श्रीं अहँ अरिष्टनेमिनाथाय नमः प्रतिदिन एक माला करें। परिणाम-दुःख का नाश होता है। आसन-प्राणायाम ब्रह्म मुद्रा में पद्मासन-दाएं पैर को घुटने से मोड़कर बायीं साथल पर रखें। एड़ी नाभि के पास के हिस्से को स्पर्श करें। बाएं पैर के पंजे को हाथ से उठाकर दाहिनी साथल पर स्थापित करें। एडी से नाभि के पास के हिस्से को स्पर्श करें। हाथों को ब्रह्म-मुद्रा में नाभि के पास स्थापित करें। बायीं हथेली नाभि के पास नीचे रहे, उस पर दाहिनी हथेली रहे। दोनों अंगूठे एक दूसरे को स्पर्श करें अंगुलियां सीधी रहे। प्रथम बार में इस आसन का प्रयोग पांच मिनट तक करें। सुविधा के अनुसार प्रतिदिन एक मिनट बढ़ा सकते हैं। लाभ-स्व-संवेदन की शक्ति का विकास।
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