Book Title: Jo Sahta Hai Wahi Rahita Hai
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 153
________________ १४१ प्रकृति एवं विकृति प्रकृति की ही विस्मृति कर देते हैं, उस सीमा का अतिक्रमण कर देते हैं, फिर समस्या पैदा क्यों नहीं होगी? बड़ा आश्चर्य होता है कि जिसने निर्माण किया और जिसका निर्माण में अधिकतम योग रहा, उसे भुला दिया जाता है। हर वस्तु के निर्माण में दो बातें होती हैं-एक बुद्धि या शिल्प और दूसरी श्रम । पता नहीं क्यों बुद्धि को अतिरिक्त मूल्य दे दिया गया और श्रम को जितना देना चाहिए, उतना भी नहीं दिया गया। बुद्धि और श्रम का असंतुलन ही एक समस्या बना हुआ है। यह बहुत बड़ी समस्या है। जब तक संतुलन नहीं होता, तब तक बात नहीं बनती। एक बुद्धिमान आदमी कुछ श्रम किए बिना दिन में एक लाख का भी अर्जन कर लेता है, ज्यादा भी कर लेता है और उसी बुद्धि में योग देनेवाला श्रमिक है, उस बेचारे को लाख-हजार-करोड़ की बात का तो सपना आता होगा, पर वह जीवन की पर्याप्त आवश्यकताओं को भी पूरी नहीं कर पाता। इस असंतुलन ने समाज की प्रकृति को विकृति बना दिया। प्रकृति में विकृति होती है तो सारी समस्याएँ पैदा होती हैं। एक आदमी चला जा रहा था। जंगल में से गुजर रहा था। प्यास लग गई। इधर-उधर कहीं पानी नहीं मिला । प्यास गहरी होती गई। गरमी का दिन, दुपहरी का समय, खोजतेखोजते एक कुआँ दिखाई दिया। वहाँ गया, देखा, पानी है, रस्सी पड़ी है, डोल भी पड़ी है, पर पानी निकालने वाला कोई नहीं है। उसने सोचा, पानी निकालू और प्यास बुझाऊँ। दूसरे ही क्षण विचार आया कि मैं पानी कैसे निकाल सकता हूँ? मैं तो अमीरजादा हूँ, बड़ा आदमी हूँ। मैं पानी निकालूँ और कोई देख ले तो मेरा बड़प्पन चूर-चूर हो जाएगा। बड़े लोग क्या समझेंगे? वे कहेंगे कि देखो आज अमीरजादा अपने हाथ से पानी निकालकर पी रहा है। बड़ी भद्दी बात होगी। वह बिना पानी निकाले, प्यासा बैठ गया। थोड़ी देर हुई, इतने में दूसरा आदमी आया। वही हालत। कंठ सूखे जा रहे हैं, बुरी हालत हो रही है। गहरी प्यास, पानी पीने के लिए खोजते-खोजते वहीं आया। देखा, डोल पड़ी है, रस्सी है, कुआँ है और आदमी भी बैठा है। बोला, 'अरे भाई! बहुत प्यास लगी है, पानी पिला दो।' उसने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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