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________________ १०४ जो सहता है, वही रहता है अधिक समय तक रह नहीं पाता, क्योंकि उसमें प्रमाद है। यह भूमिका बदलती रहती है । मानसिक दृष्टि से पूर्ण स्वस्थ रहने के लिए प्रमाद की भूमिका से बाहर आना आवश्यक होता है । अप्रमत्त भूमिका मानसिक दृष्टि से पूर्ण स्वास्थ्य की भूमिका है। वीतराग की भूमिका पूर्ण अप्रमत्त अवस्था की भूमिका है। शेष अल्पकालिक अप्रमत्त अवस्था की भूमिकाएँ हैं। बिना वीतराग की भूमिका के किसी को पूर्ण स्वस्थ कह पाना कठिन होता है। मुनि को भी पूर्ण स्वस्थ नहीं कहा जा सकता । उसके मन में समय-समय पर जाने कितने मानस दोष आ जाते हैं ! मुनि कभी लोभ में, कभी क्रोध में, कभी अहंकार में चले जाते हैं । ये विकल्प आते रहते हैं। जब मुनि की यह स्थिति है तो एक गृहस्थ के बारे में क्या कहा जा सकता है ? स्वर्णिम सूत्र तुम चाहते हो - सब मुझ पर विश्वास करें। पहले देखो - तुम अपने पर कितना विश्वास करते हो । • दूसरा मेरे बारे में क्या सोचता है सोचो, इससे तनाव बढ़ेगा। यह सोचो बारे में क्या सोचता हूं । - Jain Education International ऐसा मत मैं अपने क्या अभ्यास के बिना साध्य सध सकता है ? संभव नहीं, इसलिए अभ्यास पर ध्यान केन्द्रित हो । For Private & Personal Use Only - ★ विजय कैसे प्राप्त होती है ? इस पर चिंतन चले तो व्यक्ति कभी पराजित नहीं होता। विजय के लिए आवश्यक है - संकल्प शक्ति का विकास। www.jainelibrary.org
SR No.003054
Book TitleJo Sahta Hai Wahi Rahita Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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