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व्यक्तित्व के विविध रूप
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करके देखें
• अभय की अनुप्रेक्षा-भय मुक्ति के लिए
सहज आसन में बैठ जाएं, श्वास को भरें, आंखें कोमलता से बंध रहें, मुंह बंद । श्वास छोड़ते समय भौंवरे के गुंजन की तरह ध्वनि करें। इस ध्वनि को महाप्राण ध्वनि कहते हैं। इसकी तीन आवृति करें। उसके पश्चात शरीर को तनाव मुक्त, कहीं जकड़न नहीं, रिलेक्स करें। शरीर के दाहिने पैर के अंगष्ठ से लेकर शरीर के प्रत्येक अवयव पर चित्त को ले जाते हए शिथिलता का सुझाव दें। अब गुलाबी रंग का श्वास लें। अनुभव करें चारों ओर मलाबी रंग के परमाण फैले हए हैं। वे गुलाबी रंग के परमाणु श्वास के साथ भीतर प्रवेश कर रहे हैं। अब आनन्द केन्द्र पर चित्त को केन्द्रित करें, अनुप्रेक्षा करें। 'अभय का भाव पुष्ट हो रहा है। भय का भाव क्षीण हो रहा है।' इस शब्दावली का पांच बार उच्चारण करें, फिर इसका पांच बार मानसिक जप करें। फिर अनुचिन्तन करें। शक्ति के विकास के लिए अभय की साधना करूं, यह मेरा दृढ़ निश्चय है। मैं निश्चित ही भय से छुटकारा पा लूंगा। यह अनुचिन्तन दो मिनट तक करें
और फिर तीन बार महाप्राण ध्वनि के साथ प्रयोग सम्पन्न करें। • मंत्र का प्रयोग
ॐ ह्रीं श्रीं चन्द्र प्रभवे नमः-प्रतिदिन १०८ बार जाप करें। परिणाम-प्रभावशाली व्यक्तित्व का निर्माण। आसन-प्राणायाम कपाल भाति-पद्मासन में बैठें। आंखें कोमलता से बंद। शरीर को शिथिल और तनाव मुक्त करें। सर्वप्रथम दोनों नास-पुटों से धौंकनी की तरह श्वास-प्रश्वास करते हुए, शीघ्र गति से रेचन और पूरक करें। फेफड़ों को किसी प्रकार का आघात दिए बिना रेचन और पूरक की क्रिया की जाती है। शीघ्र गति से करने पर ही कपाल भाति निष्पन्न होती है। श्वासप्रश्वास की इस क्रिया को प्रारंभ में ५ सैकण्ड से दस सैकण्ड तक करें फिर प्रतिदिन ५ सैकण्ड बढ़ाकर ३ मिनट तक ले जा सकते हैं। सावधानी-गर्मी के मौसम में न करें। आवश्यकता हो तो स्वल्प समय तक ही करें। लाभ-एकाग्रता एवं संकल्पशक्ति विकसित होती है।
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