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अपना आलंबन स्वयं बनें
११३ लोकतंत्र का आधार है व्यक्ति । उसके मन में यदि श्रम के प्रति निष्ठा नहीं है, तो स्वस्थ राष्ट्र का निर्माण कैसे संभव होगा? प्रत्येक व्यक्ति की जीवनशैली का प्रमुख तत्त्व है स्वावलंबन। स्वावलंबन का तात्पर्य है दूसरे के श्रम का शोषण न करना । उसके प्रति निष्ठा घनीभूत बन जाए तो वह समाज और राष्ट्र के लिए उपयोगी एवं वरदान जैसी सिद्ध हो सकती है। दुःख से बचाव ___मनुष्य जो चाहे वह मिल जाए, यह संवादिता है। सुख चाहे और सुख मिल जाए, यह संवादिता है। जैसी चाह, वैसी प्राप्ति। सुख चाहे और दुःख मिल जाए, यह विसंवादिता है, विपर्यास है, किन्तु ऐसा होता है। प्रश्न है कि ऐसा क्यों होता है? सुख और दुःख शिष्य ने यही प्रश्न आचार्य से पूछा -
सुखं वांछति सर्वोऽपि, दुःखं कोऽपि न वांछति।
सुखार्थं यतते लोको, दुःखं तथापि जायते ।। सब प्राणी सुख चाहते हैं, दुःख को कोई नहीं चाहता। व्यक्ति सुख के लिए प्रयत्न करता है, फिर भी उसे दुःख मिल जाता है। इसका कारण क्या है? आचार्य ने कहा
दुःखं मूर्छा मनुष्याणां, अमूर्छा वर्तते सुखम्। __मूढो दुःखमवाप्नोति, अमूढः सुखमेधते।।
मूर्छा दुःख है, सुख है अमूर्छा । मूढ़ व्यक्ति दुःख को प्राप्त करता है। जो मूढ़ नहीं है, वह सुख को प्राप्त करता है। अभावात्मक परिभाषा
सुख और दुःख की एक परिभाषा है, 'मूर्छा दुःख है, अमूर्छा सुख है।' सुख-दुःख की अनेक परिभाषाएँ गढ़ी गईं। पश्चिम के नीतिशास्त्रियों और भारत के अध्यात्मवेत्ताओं ने सुख-दुःख के संदर्भ में अनेक परिभाषाएँ दीं। एपीक्यूरस की एक परिभाषा है, 'दुःख का अभाव ही सुख है।' यह अभावात्मक परिभाषा है। व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक पीड़ा नहीं है,
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