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जो सहता है, वही रहता है आईं, देखा और फिर बोलीं, 'देखो, कितना कमजोर है यह संन्यासी! हमने कहा और ईंट निकाल दी।' संन्यासी ने सुना
और ईंट फिर लगा ली। वही बहिन दुबारा पानी लेने आई और बोली, 'अच्छे संन्यासी बने तुम! हमारे कहने से ईंट निकालोगे
और कहने से ही ईंट लगाओगे, तो फिर संन्यासी बनोगे ही नहीं। संन्यासी बनना है तो हम कहते रहेंगे, तुम्हें जो करना है, वह करते रहो। हम कहते हैं उसकी प्रतिक्रिया से तुम चलोगे तो संन्यासी नहीं बन पाओगे।'
इस दुनिया में जीना और प्रतिक्रिया के साथ जीना, यह सबसे बड़ी समस्या है। अहिंसा की सबसे बड़ी फलश्रुति है कि कौन क्या कहता है, इससे निरपेक्ष होकर अपने धर्म के आधार पर चलो, अपने धर्म के आधार पर करो। जब तक हमारी प्रतिक्रियात्मक वृत्ति की सफाई नहीं होती, धुलाई नहीं होती तो कौन अहिंसक बन सकता है? अहिंसा की बहुत बड़ी बातें लोग करते हैं, पर केवल स्थूल बात पर ही अटक जाते हैं। बस इतना कि पैर के नीचे चींटी मर जाती है तो हिंसा हो गई और भारी से भारी प्रतिक्रिया हो जाती है तो लगता ही नहीं कि हिंसा हुई है।
__ आज की अनुशासनहीनता का कारण क्या है? सबसे बड़ा कारण है प्रतिक्रिया। दूसरे की बात सुनना, दूसरे की बात मानना, यह तथ्य हमारे जीवन से निकलता जा रहा है। लोग सोचते हैं कि अपनी जो धारणा है, उससे ही काम करना है, दूसरा कहने वाला है ही कौन? सीख मानना, शिक्षा स्वीकार करना, यह हमारी आदत में जैसे रहा ही नहीं। आज की नई पीढ़ी में असहिष्णुता, दूसरे की बात स्वीकार न करना, अनुशासन को न मानना जैसी बातें फैल रही हैं। यह भी हिंसा है। यह उग्र होती जा रही है। इसमें दोनों ही कारण बनते हैं, कहने वाले कहना नहीं जानते और मानने वाले मानना नहीं जानते।
अनुशासन जीवन में बहुत आवश्यक है। सामाजिक जीवन हो और अनुशासन न हो, तो वह जीवन मात्र हड्डियों का ढाँचा ही तो है। अस्थियों का एक कंकाल मात्र है। हर मनुष्य का शरीर, हर प्राणी का शरीर एक कंकाल है। पर यह चलता है। किस आधार पर चलता है? इसमें प्राण की शक्ति काम
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