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जो सहता है, वही रहता है अनेक समस्याओं को जन्म दिया है, पर समाधान नहीं मिल रहा है। वह मनोवृत्ति है-परिणामगामी। हम परिणाम चाहते हैं, परिणाम को मिटाना चाहते हैं और परिणाम को बदलना चाहते हैं। तीनों बातें परिणाम के आधार पर ही करना चाहते हैं। मिटाना है तो परिणाम को और पाना है तो परिणाम को। परिणाम पर ही हमारा सारा ध्यान जाता है। प्रवृत्ति और वृत्ति पर हमारा ध्यान नहीं जाता।
एक अधिकारी नया-नया आया। आलू की फसल बहुत अच्छी थी। जाकर देखा तो पत्ते ही पत्ते दिखाई दे रहे थे। केवल पत्ते और कुछ नहीं। उसने कहा कि लोगों ने गलत सूचना दी। बताया गया कि आलू की फसल बहुत अच्छी है, लेकिन यहाँ तो पत्तों के अलावा कुछ है ही नहीं। केवल पत्ते हैं और कुछ नहीं। आखिर आलू कहाँ गए ? लोग मन ही मन में हँसे और बोले, 'महाशय! आलू जमीन में होते हैं। आलू चाहिए तो जमीन खोदकर देखो।' जब जमीन को खोदकर देखा गया, तो आलू ही आलू निकले।
पत्तों के आधार पर आलुओं का निर्णय नहीं किया जा सकता। जो भीतर होता है, उसे बाहर नहीं पाया जा सकता। हमारी मनोवृत्ति ऐसी है कि हम ऊपर की बात पर अधिक विश्वास करते हैं, भीतर जाने का प्रयत्न ही नहीं करते। वृत्ति एवं प्रवृत्ति
भीतर गए बिना कुछ नहीं मिलता। परिणाम सदा भीतर ही रहता है। परिणाम के नीचे दो बातें रहती हैं, एक प्रवृत्ति और प्रवृत्ति के नीचे रहती है वृत्ति। वृत्ति को पकडे. तो परिणाम की बात समझ में आ सकती। केवल परिणाम के आधार पर होने वाले सारे निर्णय गलत होते हैं, मिथ्या होते हैं और भ्रामक होते हैं। हम क्रोध को मिटाना चाहते हैं, बुराई को मिटाना चाहते हैं, अज्ञान को मिटाना चाहते हैं, अनुशासनहीनता को मिटाना चाहते हैं, आक्रामक मनोवृत्ति को मिटाना चाहते हैं, संग्रह की मनोवृत्ति और इसी प्रकार की सारी बुराइयों को मिटाना चाहते हैं। हम ही नहीं, सारा समाज और सरकार इन्हें
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