________________
जो सहता है, वही रहता है मेरे साथियों के उत्तर गलत थे।' माँ पूछा, 'क्या प्रश्न पूछा गया था ?' उसने कहा, 'प्रश्न यह था कि गाय के कितने पैर होते हैं? मेरे सब साथियों ने उत्तर दिया कि गाय के दो पैर होते हैं और मैंने बताया कि गाय के तीन पैर होते हैं। मेरा उत्तर सत्य के अधिक निकट था, इसलिए मुझे पुरस्कार दिया गया।'
'स्यात्' शब्द सत्य के निकट ले जाता है, सत्य के साथ जोड़ देता है। उसके द्वारा भी पूरे सत्य की उपलब्धि नहीं होती। पूरा सत्य भाषा के माध्यम से उपलब्ध होता ही नहीं। ‘स्यात्' शब्द सत्य के परिसर में ले जाता है, इसलिए हम पुरस्कृत भी हो जाते हैं। सत्य को साक्षात् करने की इससे सुंदर युक्ति अन्यत्र नहीं मिलती।
राजा की सभा में एक पंडित था। वह बहुत विद्वान, तार्किक और अपनी बात पर अड़ने वाला था। कोई भी आता और कहता कि यह बात सच है, तो पंडितजी तत्काल उसका खंडन कर देते। एक बार राजा ने कहा, 'पंडित, तुम बड़े नटखट हो । सबका खंडन कर देते हो। अच्छा, मेरा तो यही विचार है। बोलो, यह तुम्हें कैसा लगा?' पंडित ने कहा, 'यह बिल्कुल गलत बात है, क्योंकि यह आपका विचार है, मेरा नहीं। जो मेरा विचार नहीं, वह कभी सच नहीं हो सकता, अवश्य गलत ही होगा।'
आज लोग ऐसा ही मानने लगे हैं। लोगों ने सीमा बनाकर घोषणा कर दी है कि मेरे विचार में आओ, तुम्हारा कल्याण होगा, स्वर्ग मिलेगा। अन्यथा भयंकर नरक में जाओगे। दुनिया बड़ी है। मैं कुछ सोचता हूँ, बोलता हूँ, तो दूसरा कहने से नहीं हिचकता कि यह सब मेरी नकल है। इसमें नया विचार जैसा कुछ भी नहीं है। क्या सत्य का ठेका किसी एक व्यक्ति ने ही ले रखा है? व्यक्ति में इतना प्रबल अहंकार हो जाता है कि सत्य उसके नीचे दब जाता है और व्यक्ति के विचार ऊपर रहते हैं। विचार के बंधन से, चिंतन की कारा से तथा स्मृति, कल्पना और बुद्धि की सीमा से परे जाने का एक मात्र उपाय है
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org