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व्यक्तित्व के विविध रूप
कैसे? अब शेर से डर लगता है।' ऋषि ने उसे शेर बना दिया। अब भी भय नहीं मिटा। उसने एक दिन ऋषि से कहा, 'अब मुझे किसी भी पशु से भय नहीं लगता, केवल शिकारी से डर लगता है।' ऋषि ने पूछा, 'अब क्या बनना चाहते हो? क्या मनुष्य बना दूँ?' उसने कहा, 'नहीं, मैंने स्पष्ट अनुभव कर लिया है कि सभी अवस्थाओं में डर बना रहता है। चाहे बिल्ली, कुत्ता, शेर या शिकारी बन जाओ, डर कभी मिटेगा नहीं। मुझे तो फिर से चूहा ही बना दो।' ऋषि ने कहा, 'तथास्तु, पुनर्मूषको भव।' वह चूहा बन गया।
डर मिटेगा नहीं, चाहे कुछ भी बन जाओ। वृत्ति बदले बिना आदमी कुछ भी बन जाए, कोई परिवर्तन नहीं होता । मूल बात है, भय की वृत्ति बदलने पर ही भय मिटता है। गुप्ति की साधना
__ वृत्ति की प्रधानता हमें स्वीकार करनी होगी। वृत्ति बदलती है, गुप्ति की साधना से। गुप्तियाँ तीन हैं-मन की गुप्ति, वचन की गुप्ति और काया की गुप्ति । हिंसा हमारी वृत्ति का ही एक परिणाम है। जब तक मनुष्य में प्रियता
और अप्रियता का संवेदन तीव्र है, तब तक वह अहिंसक कैसे बन सकता है? जब तक मनुष्य में प्रियता और अप्रियता का संवेदन तीव्र है, तब तक वह ब्रह्मचारी कैसे बन सकता है? जब मनुष्य में प्रियता और अप्रियता की गहरी अनुभूति है, तब वह अपरिग्रही कैसे बन सकता है ? हमारी जैसी वृत्ति होगी, वैसी ही प्रवृत्ति होगी। हमारा सारा आचरण और सारा व्यवहार हमारी मौलिक वृत्ति पर आधारित होता है। वृत्ति प्रवृत्ति को जन्म देती है। प्रवृत्ति परिणाम लाती है। यह एक पूरी श्रृंखला है, जिसमें एक को भी छोड़ा नहीं जा सकता।
आज की समस्या इसीलिए उलझी हुई है, क्योंकि हम केवल परिणाम को मिटाना चाहते हैं। दूसरों की बात छोड़ दें, धार्मिक लोग भी परिणाम को मिटाना चाहते हैं। आदमी आता है, सीधा कहता है, ‘महाराज! गुस्सा बहुत आता है। इसे छोड़ना चाहता हूँ।' ये सारे परिणाम हैं। इनके पीछे भी बहुत कुछ
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