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व्यक्तित्व के विविध रूप
नामकरण का आधार
हम इसे उदाहरण की भाषा में समझें । एक व्यक्ति व्यापारी है। वह क्षत्रिय नहीं है, शूद्र नहीं है, ब्राह्मण भी नहीं है । क्या एक व्यापारी कभी पढ़ता नहीं है ? अध्ययन नहीं करता है ? क्या वह पढ़ना नहीं जानता ? एक व्यापारी अध्ययन भी करता है, किन्तु जिस समय वह अध्ययन करता है, उस समय वह व्यापारी नहीं होगा, ब्राह्मण बन जाएगा । जिस समय वह अपने घर-परिवार की सुरक्षा का काम करेगा, क्षत्रिय बन जाएगा । जिस समय वह सफाई का काम करेगा, शूद्र बन जाएगा। मुख्यता के आधार पर यह नामकरण किया गया। एक आदमी को मूर्ख कहा जाता है। क्या उसमें समझदारी नहीं होती ? जिसको समझदार कहा जाता है, उसमें मूर्खता नहीं होती ? क्या ऐसा कोई समझदार नहीं है, जिसमें मूर्खता का अंश न हो ? क्या ऐसा कोई मूर्ख नहीं, जिसमें समझदारी का अंश न हो? हम जिसे पागल कहते हैं, कभी-कभी वह भी बड़ी समझदारी की बातें करता है, और कभी-कभी समझदार भी पागलपन की बात कर लेता है । नामकरण होता है केवल प्रधानता के कारण ।
सापेक्ष सत्य
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एक व्यक्ति मूर्खतापूर्ण कार्य अधिक करता था, इसलिए सब उसे मूर्ख कहते थे। लोगों से उसने पूछा, 'मुझे ऐसा क्यों कहते हो ?' लोगों ने कहा, 'तुम्हारे लक्षण ही ऐसे हैं। बताओ हम क्या करें ?' उसने सोचा, 'यहाँ रहना ठीक नहीं है। यहाँ सब मूर्ख ही कहेंगे, इसलिए किसी दूसरे देश चला जाऊँ ।' वह वहाँ से बहुत दूर चला गया। किसी गाँव में पहुँचा। उसे प्यास लगी थी। उसने देखा कि कुएँ के पास टोंटियाँ लगी हुई हैं। वह एक टोंटी के पास जाकर बैठ गया । उसे खोला और पानी पी लिया। पानी पीने के बाद वह सिर हिलाने लगा। वह सिर हिलाता जा रहा है, पानी गिरता जा रहा है। दूर से एक आदमी यह तमाशा देख रहा था। उसने कहा, 'अरे मूर्ख ! यह क्या कर रहा है ?' उसने चौंककर उस व्यक्ति को देखा और आश्चर्य से पूछा, 'तुमने मेरा नाम कैसे
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