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समता की दृष्टि
परोयूँ तो कितना परोसूँ ? पति तो पास में ही बैठा है। यदि अधिक या कम परोस दिया तो घर में कलह हो जाएगी। पति कुपित हो जाएगा। उसने बाईं आँख से पति की ओर देखा । पिता ने देख लिया । उसने पुत्री से कहा, 'बाबा से भी बाई ।' बाईं आँख में कुछ विशेषता होती है।
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जब प्रियता और अप्रियता की आँख बनी रहती है, तब क्रोध समाप्त नहीं होता । क्रोध समाप्त होता है, तीसरी आँख खुलने से। तीसरी आँख समता की आँख है । कोई भी पदार्थ प्रिय या अप्रिय नहीं होता। जैसे-जैसे अनेकांत की दृष्टि विकसित होती है, प्रियता और अप्रियता का भाव कम होता जाता है और पदार्थ का पदार्थ की दृष्टि से दर्शन करने वाली तीसरी आँख खुल जाती है ।
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साधना का सूत्र
अनेकांत कोई तत्त्वदर्शन नहीं है । यह हमारे समग्र जीवन का दर्शन है । यह साधना का महान सूत्र है । जब तक राग और द्वेष कम नहीं होते, प्रियता और अप्रियता का भाव कम नहीं होता, तब तक तीसरी आँख नहीं खुलती और अनेकांत की दृष्टि उपलब्ध नहीं होती । अनेकांत को प्राप्त करने के लिए राग और द्वेष को कम करने वाली साधना चाहिए। जैसे-जैसे राग कम होता है, प्रियता का संवेदन कम होता है, वैसे-वैसे अनेकांत का विकास होता है, तीसरी आँख का विकास हो जाता है । सारी दृष्टि बदल जाती है और तब पदार्थ, केवल पदार्थ रह जाता है । वह न प्रिय रहता है और न अप्रिय । जब प्रिय और अप्रिय नहीं रहता, तब क्रोध कैसे रहेगा ? क्रोध केवल परिस्थिति से ही नहीं आता । व्यक्ति एक को प्रिय मानेगा और दूसरे को अप्रिय, तब तक क्रोध समाप्त नहीं होगा। जैसे-जैसे प्रियता और अप्रियता का भाव कम होगा, जितना कम से कम होगा, वैसे-वैसे क्रोध भी कम होता जाएगा। प्रतिक्रिया पर नियंत्रण
क्रिया और प्रतिक्रिया स्वाभाविक हैं। पैर में काँटा चुभा और हाथ तत्काल उसे निकालने के लिए पहुँच गया। काँटा चुभना क्रिया है, प्रतिक्रिया है तत्काल काँटा निकालना । काँटा चुभा, संवेदी तत्त्वों के द्वारा सूचना मस्तिष्क तक पहुँची।
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