________________
जो सहता है, वही रहता है परिस्थितियाँ हैं कि क्रोध आए बिना नहीं रह सकता। यदि परिस्थितियों के कारण ही क्रोध आए तो क्रोध की आदत बदलने की बात नहीं होती। पहले परिस्थितियों को समाप्त करना होगा। उनके समाप्त हो जाने पर क्रोध नहीं
आएगा। न नौ मन तेल होगा और न राधा नाचेगी। समाज में न कभी परिस्थितियाँ समाप्त होगी और न कभी क्रोध समाप्त होगा। इस दुनिया में कभी परिस्थितियाँ समाप्त होने वाली नहीं हैं। उन्हें समाप्त करने का विचार मूर्खतापूर्ण है। एक परिस्थिति समाप्त होगी तो पाँच नई सामने होंगी। एक समस्या सुलझेगी और पाँच की उलझन सामने होगी। परिस्थितियों का अंत नहीं किया जा सकता । समस्याओं को समूल नहीं मिटाया जा सकता।
एक आंदोलन चला कि अधिक अन्न उपजाओ। खेतों में रासायनिक खाद दो, अन्न की उपज अधिक होगी। यह क्रम शुरू हुआ। रासायनिक खाद से अन्न के तत्त्व समाप्त होने लगे। इससे अन्न में इतने विष घुल जाते हैं कि यह उसे खाने वाले की मौत का कारण भी बन सकता है। एक ओर प्रयत्न चलता है, ताकि आबादी न बढ़े। एक ओर औषधियों का प्रयत्न चलता है, ताकि मनुष्य को बचाया जा सके। एक ओर रासायनिक खाद का प्रयत्न चलता है, ताकि बिना कोई बवंडर खड़ा किए आबादी को कम किया जा सके। यह आबादी घटाने का बहुत सस्ता उपाय है। जहरीली औषधियाँ, जहरीला भोजन
और परिवार नियोजन, इन तीनों में मुझे कोई अंतर नहीं दिखता। तीनों में एक ही बात है। राजनीतिज्ञ बड़े चतुर होते हैं। वे कहते हैं कि सीधा मारने का उपाय मत करो। ऐसा उपाय करो, ऐसी दवा दो, जिससे लेनेवाले को मिठास आए और अपना काम भी बन जाए। गुड़ देने से काम बने, तो जहर क्यों दें? समता है तीसरी आँख
हमारी दो आँखें हैं। दाईं आँख है प्रियता की और बाईं आँख है अप्रियता की। तीसरी आँख है समता की।
पिता पुत्री के घर गया। वह दामाद के साथ भोजन करने बैठा। उसकी कन्या भोजन परोसने आई। उसने दोनों की थाली में खिचड़ी परोसी। अब घी परोसने की बारी आई। उसने सोचा कि पिताजी की थाली में घी परोसूं या नहीं? यदि
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org