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जो सहता है, वही रहता है ऐसी नहीं मिलती, जो मिथ्या हो। क्या यह कोई चमत्कार है? क्या संसार में कोई मिथ्या या असत्य नहीं है? यदि संसार में कुछ भी असत्य नहीं है, तो सब कुछ सत्य है। यदि ऐसा नहीं है, तो फिर असत्य प्राप्त क्यों नहीं होता? अनेकांत के अभ्यासी को कोई मिथ्या दृष्टि मिलती ही नहीं। सारी मिथ्या दृष्टियाँ एकांतदर्शी के लिए संभव होती हैं। जिसने अनेकांत को हृदयंगम कर लिया, उसके लिए कोई भी दृष्टि मिथ्या नहीं होती। फिर प्रश्न उपस्थित होता है कि कौन-सा सम्यक है और कौन-सा असम्यक? इस प्रश्न का उत्तर किसी साम्प्रदायिक व्यक्ति से लिया जाए, तो वह कहेगा कि मेरे ही शास्त्र सम्यक हैं, तुम्हारे शास्त्र मिथ्या और असम्यक हैं। किन्तु जब अध्यात्म की दृष्टि से, अनेकांत की दृष्टि से विचार किया गया, तो उन्होंने कहा कि कोई शास्त्र सम्यक नहीं होता और कोई शास्त्र मिथ्या नहीं होता। जिसकी दृष्टि सम्यक है, उसके लिए सारे शास्त्र सम्यक हैं और मिथ्यादृष्टि व्यक्ति के लिए सारे शास्त्र मिथ्या हैं। शास्त्र का सम्यक होना या मिथ्या होना हमारी दृष्टि पर निर्भर हैं। जब अनेकांत की दृष्टि जाग जाती है, तब सब कुछ सम्यक हो जाता है, मिथ्या कुछ लगता ही नहीं। जब तक हम इन दो आँखों से देखते हैं, तब एक सत्य लगता है, एक असत्य। एक प्रिय होता है, एक अप्रिय। एक स्वीकार्य होता है
और एक अस्वीकार्य । जब तीसरी आँख खुल जाती है, तब प्रिय और अप्रिय के भेद मिट जाते हैं, केवल पदार्थ बचता है। तब न कुछ नश्वर है और न अनश्वर, न कुछ नित्य और न अनित्य रहता है। तीसरी जाति बन जाती है। यह तीसरी आँख है-अनेकांत। सत्य का साक्षात्कार
__ अनेकांत के आचार्यों ने कहा है कि जगत में कुछ भी सर्वथा नित्य नहीं है और अनित्य भी नहीं है। नित्य को देखने वाली आँख अलग होती है और अनित्य को देखने वाली आँख अलग। किन्तु तीसरी आँख वह है, जो सच्चाई को देखती है। उस आँख के खुल जाने पर तीसरी जाति सामने आती है। वह न नित्य होती है और न अनित्य, वह नित्यानित्य होती है। एक आदमी समानता को देखता है, दूसरा असमानता को देखता है। तीसरी आँख खुल जाने पर न समानता है और न असमानता। सम-असम तीसरी जाति बन जाती है। तीसरी जाति बन जाना या तीसरी आँख खुल जाना अनेकांत का बहुत बड़ा
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