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जीवन में परिवर्तन
वह दूसरे घर गया। दूसरा बोला, 'क्या बात पूछते हो? सुख की तो बात ही न करो। ऐसी कर्कशा पत्नी मिली है कि पूरा दिन सिर खाती रहती है। मेरे जीवन में तो सुख की कोई कल्पना ही नहीं की जा सकती।'
तीसरे के पास गया, चौथे के पास गया। किसी की पत्नी के पास गया तो वह पति को क्रूर बतलाती और पति के पास गया तो वह पत्नी को क्रूर बतलाता। पिता के पास गया तो वह पुत्र को बदमाश बतलाता। सैकड़ों-सैकड़ों घरों में घूमा, परिक्रमा करता चला गया, हजारों घरों के चक्कर लगाता रहा, लेकिन सब खुद को दुःखी बतलाते, कोई सुखी नहीं मिला। बड़ा आश्चर्य हुआ। गुरु के पास आकर बोला, 'मैं तो घूमते-घूमते थक गया। आपने कहा था कि सबसे सुखी व्यक्ति का अंगरखा ले आना। सबसे सुखी की बात तो दूर, मुझे तो कोई सुखी व्यक्ति मिला ही नहीं।'
गुरु ने कहा, 'क्यों दुःखी हैं? क्या दुःख है?'
उसने कहा, 'किसी का पड़ोसी खराब, किसी का बेटा खराब, किसी का बाप खराब, किसी का और कुछ खराब, हर आदमी दूसरे आदमी के कारण दुःख भोग रहा है।' __गुरु ने बताया, 'सुख का गुर है दूसरे की ओर नहीं बल्कि अपनी ओर झाँकना। यही सुख का उपाय है।'
वह बोला, 'इतनी छोटी बात आप पहले ही मुझे बता देते। क्यों मुझसे फालतू के चक्कर लगवाए ? क्यों मुझे घुमाया? क्यों परिक्रमा करवाई? बहुत छोटी बात थी, आप पहले ही बता सकते थे।'
गुरु ने कहा, 'सत्य दुष्पाच्य होता है, वह सीधा नहीं पचता। अगर मैं पहले ही यह बात कह देता तो तू हर्गिज नहीं मानता। जब स्वयं अनुभव कर लिया, सबकी परिक्रमा कर ली, सबके चक्कर लगा लिए, अब यह बात तेरी समझ में
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