________________
३४
जो सहता है, वही रहता है होता। प्रियता और अप्रियता का दृष्टिकोण बराबर बना रहता है। किसी भी आदमी को देखू, तो शुद्ध दृष्टि से देख सकूँ, यह बड़ा कठिन काम है। आदमी को देखना भी संभव नहीं रहा। देखने से पहले ही दीवारें खड़ी हो जाती हैं। कभी शत्रुता का भाव, कभी मित्रता का भाव, किसी के प्रति स्नेह, किसी के प्रति करुणा और किसी के प्रति क्रूरता, कोई न कोई मनोभाव दर्शक और दृश्य के बीच दीवार बन कर आ ही जाता है। कोई आदमी किसी का शुद्ध चेहरा देख पाता हो, यह बहुत कम संभव है। विचारों में विरोध
दुनिया में कुछ भी एकरूप नहीं है। मौसम की तरह सब बदलते रहते हैं। आदमी भी कभी ठंडा होता है, कभी गर्म हो जाता है। न जाने कितनी बार ऐसा होता है! यह परिवर्तन एक अटल नियम है। इसे कभी नहीं टाला जा सकता। सब बदलते हैं। हमारे विचार भी बदलते हैं। वे भी शाश्वत कहाँ हैं? कुछ लोग कहते हैं कि विचार तो शाश्वत हैं। वास्तव में विचार और शाश्वत दोनों में ही विरोधाभास है, इसलिए दोनों का योग कैसे हो सकता है? विचार का अर्थ होता है चलने वाला। चलने वाला शाश्वत कैसे होगा? वह कभी शाश्वत नहीं हो सकता। जो चल है, वह अचल नहीं हो सकता और जो अचल है, वह चल नहीं हो सकता। चल और अचल का योग तो हो सकता है। एक द्रव्य में चलांश भी होता है और अचलांश भी होता है। दोनों अंश मिल सकते हैं, किन्तु जो अचल है, वह चल नहीं हो सकता और जो चल है, वह कभी अचल नहीं हो सकता। जो ध्रुव है, वह परिवर्तनशील नहीं हो सकता
और जो परिवर्तनशील है, वह कभी ध्रुव नहीं हो सकता। प्रत्येक द्रव्य में दोनों प्रकार के धर्म मिलते हैं-ध्रुवांश और चलांश, परिवर्तनशील और अपरिवर्तनशील। विचार सदा परिवर्तनशील होता है। कहते हैं कि आज इस आदमी का विचार बदल गया। इसमें आश्चर्य क्यों होना चाहिए? यदि विचार न बदले तो उसमें आश्चर्य है। विचार का काम ही बदल जाना है। कल जो विचार था, वह आज नहीं होगा और आज जो विचार है, वह आगे नहीं होगा। विचार का काम है सतत प्रवाह, गतिशीलता, बदलते जाना और बदलते जाना। जो पकड़कर बैठ जाते हैं कि मैंने तो इस एक विचार को पकड़ लिया है, अब इसे छोड़ेंगा नहीं। वह अहंकार और गर्व का अनुभव करता है और सोचता
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org