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जो सहता है, वही रहता है स्थिति में सब भयभीत हो जाते हैं, सब परस्पर खिंच जाते हैं। तनाव की स्थिति में मांसपेशियाँ खिंच जाती हैं, हड्डियाँ कड़ी हो जाती हैं। शिथिलीकरण में कोई आदमी गिरता है तो उसे चोट नहीं लगती और यदि तनाव की स्थिति में कोई आदमी गिरता है तो उसे बहुत गहरी चोटें आती हैं। जितना अधिक तनाव होगा, उतनी ही अधिक चोट।।
ध्यान एक प्रक्रिया है। उसका परिणाम है कि व्यक्ति की पकड़ कम हो जाती है। उसमें प्रवेश का अवकाश है तो निर्गम का भी उतना ही अवकाश है। ध्यान करने वाले सबका स्वागत करते हैं, आने वाले का भी और जाने वाले का भी। ध्यान न करने वाले अनेक तथ्यों को ऐसे पकड़ लेते हैं कि वे जीवन भर उन्हें छोड़ नहीं सकते। पकड़ने वाले बहुत दुःखी होते हैं।
ध्यान का प्रारम्भ करते ही व्यक्ति विचारों से आक्रांत हो जाता है। ध्यान करने वाले को विचारों के इस प्रवाह से घबराना नहीं है। वह ज्ञाता-द्रष्टा बन जाए। जो आते हैं, उन्हें देखें और छोड़ दें। जैसे-जैसे द्रष्टाभाव और ज्ञाताभाव अधिक पुष्ट होता जाएगा, वैसे-वैसे विचारों का प्रवाह मंद और कमजोर होता जाएगा। जैसे-जैसे अनुभूति जागेगी, अनुभव का रस प्रबल होगा, विचार निर्बल होते जाएँगे। किन्तु पहले ही दिन सोचा जाए कि विचार आए ही नहीं, यह असंभव बात है। इसीलिए ध्यान करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को कैसे सोचें, यह सीखना चाहिए। जो व्यक्ति इन कँटीले मार्ग में चलतेचलते, इन नुकीले काँटों के बीच अपनी जीवन-यात्रा को चलाते हुए इनसे परेशान होना नहीं चाहता, काँटों की चुभन से पीड़ित होना नहीं चाहता और निर्विघ्न रूप से चलना चाहता है, उसके लिए यह बहुत उपयोगी है कि वह 'कैसे सोचता है-इस विज्ञान को सीखे।
हर आदमी सोचता है। कोई भी आदमी ऐसा नहीं मिलता, जो नहीं सोचता हो। पर प्रश्न है, कैसे सोचें?
‘सोचना' एक कला है। हर आदमी इस कला को नहीं जानता। इसे कोई-कोई आदमी ही जानता है। जो इसे जान लेता है, उसका मार्ग बहुत साफ हो जाता है।
एक फकीर ने चर्चा के प्रसंग में कहा, 'मैंने हर व्यक्ति से कुछ न कुछ अवश्य ही सीखा है।' एक व्यक्ति ने पूछ लिया, 'आपने चोर से क्या सीखा?' फकीर बोला, 'एक बार
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