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जीवन में परिवर्तन
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निर्माण हुआ। कारण स्पष्ट है कि कोई दूसरा आक्रमण कर देगा, आएगा, मार डालेगा और लूट लेगा, इसलिए शस्त्रों का निर्माण हुआ। मूल कारण सुरक्षा है। जब-जब दूसरों के प्रति अधिक ध्यान जाता है, तब-तब खतरा मंडराने लगता है। मनुष्य का स्वभाव ही ऐसा बन गया है कि वह 'स्व' का मूल्य नहीं जानता, 'पर' का मूल्य ज्यादा जानता है। 'स्व' का मूल्य नहीं जानता, परिस्थिति का मूल्य ज्यादा जानता है। ____अपनी सभी दुर्बलताओं को छिपाने के लिए मनुष्य के पास एक अमोघ शस्त्र है। वह है परिस्थिति । यह शस्त्र अनुभव से भी बड़ा मान लिया गया है। अणुबम बनाने वालों से भी पूछा जाए कि इतने घातक, संहारक शस्त्र का निर्माण क्यों किया? वे कहेंगे कि परिस्थितियों से बाध्य होकर हमें ऐसा करना पड़ा है, अन्यथा हम कभी इसका निर्माण नहीं करते। ____ आज आदमी परिस्थितिवादी बन गया है। उसने सारा मूल्य परिस्थिति को ही दे डाला। इसका अर्थ यह है कि मनुष्य छिलके को अधिक मूल्य देता है, सारभूत पदार्थ को नहीं। छिलका ही उसके लिए सब कुछ बन चुका है।
अनेकांत की दृष्टि से सोचनेवाला कोई भी व्यक्ति यह नहीं कह सकता कि परिस्थिति का कोई मूल्य नहीं है। परिस्थिति का भी मूल्य है, किन्तु जितना मूल्य छिलके का है, परिस्थिति का भी उतना ही है। कोई भी समझदार आदमी कोरे छिलके को नहीं खाता। क्या परिस्थिति को ही सब कुछ मानकर उसकी ओट में खुद को छिपाने की कोशिश करने वाला व्यक्ति छिलका नहीं खा रहा है? वह परिस्थिति को अतिरिक्त मूल्य दे रहा है। उसे इतना मूल्य दे रहा है, जितना मूल्य उसका है ही नहीं।
परिस्थिति मनुष्य को तभी प्रभावित करती है, जब उसमें प्रभावित होनेवाले बीज विद्यमान होते हैं। किसी ने गाली दी, क्रोध आ गया। परिस्थिति बनी, क्रोध आ गया। परिस्थिति को अस्वीकार नहीं किया जा सकता, किन्तु यह समझ लेना चाहिए कि गाली क्रोध को तभी उत्पन्न करती है, जब व्यक्ति में क्रोध के बीज विद्यमान हों। जब क्रोध के बीज समाप्त हो जाते हैं, तब हजार गालियाँ देने पर भी क्रोध उत्पन्न नहीं होता, कभी नहीं होता। ऐसे व्यक्तियों में क्रोध उत्पन्न करना सहज नहीं होता। हजार प्रयत्न करने पर भी उनमें क्रोध उत्पन्न होता ही नहीं।
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