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जीवन में परिवर्तन
२५ नितांत व्यक्तिवादी दृष्टिकोण और नितांत समाजवादी दृष्टिकोण आज समूचे समाज को उलझाए हुए हैं और हमारी समस्याएँ भी उनके साथ उलझी
हम स्वस्थ चिंतन की चर्चा करते हैं। हम इन दोनों दृष्टियों का समन्वय किए बिना एक स्वस्थ जीवन प्रणाली का सूत्रपात नहीं कर सकते । वर्तमान की उलझनों को देखता हूँ, तो मुझे यही लगता है कि जिन देशों में यह समाजवादी प्रणाली प्रचलित हैं, वहाँ वैयक्तिक स्वतंत्रता समाप्त हो जाती है। सच्चा सुख स्वाधीनता
व्यक्ति के लिए तीन बातें बहुत महत्त्वपूर्ण होती हैं स्वतंत्रता, स्वावलंबन और अपने पुरुषार्थ पर विश्वास । ये व्यक्तिगत जीवन के तीन बड़े सूत्र हैं। मैं इन्हें व्यक्तिगत जीवन के तीन बड़े अवदान मानता हूँ। बड़ी देन है स्वतंत्रता। आदमी जब स्वतंत्र नहीं होता, तो फिर यंत्र और मनुष्य में कोई अंतर नहीं होता। रोटी के लिए, सुविधा के लिए, उपयोगिता के लिए कोई अपनी स्वतंत्रता बेच दे, उससे बड़ी दासता की मनोवृत्ति नहीं हो सकती। हमारे समाज में भी दासों की परम्परा रही है। नौकर अलग होता है, दास अलग होता है। नौकर वेतन लेता है, काम देता है। वह स्थायी नहीं होता। मालिक चाहता है, तो मालिक छोड़ देता है और नौकर चाहता है, तो नौकरी छोड़ देता है। नौकरी है, करे या न करे। किन्तु दासता की एक भयंकर परम्परा थी। व्यक्ति बिक जाता था। गाय को खरीदा, भैंस को खरीदा। खरीदने के बाद गाय और भैंस मालिक की हो जाती हैं। वैसे ही आदमी बिक जाता और मालिक उसे खरीद लेता। अब दास उस मालिक का हो गया, जिसे वह कभी नहीं छोड़ सकता। मालिक चाहे तो मारे, जिंदा रखे, पीटे या सताए, दास उसे कभी नहीं छोड़ सकता था। क्या गुलामी या दासता की मनोवृत्ति कभी छोड़ी जा सकती है? रोटी और सुख-सुविधा के लिए आदमी बिक जाए, यह गुलामी की मनोवृत्ति है। कोई भी मनुष्य इसके लिए बिकना नहीं चाहता, गुलाम बनना नहीं चाहता। अपने स्वतंत्र अस्तित्व को वह कायम रखना चाहता है। दुनिया में जितनी स्वतंत्रता प्रिय है, उतनी शायद कोई और बात प्रिय नहीं होती।
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