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दासजी दोशी, प्राध्यापक श्री रसिकलाल छोटालाल परीख, तथा दिवंगत, सुप्रसिद्ध बौद्ध विद्वान श्री धर्मानन्द कौसाम्बी, मौलाना अबुजफर नदवी आदि जैसे गण्य मान्य विद्वानों का मुझे उत्कृष्ठ सहयोग मिला था। इस मन्दिर द्वारा अनेक ग्रंथों का प्रकाशन कार्य किया गया तथा अनेक प्रतिभावान विद्याथियों को उच्चकोटि का अध्ययन आदि कराया गया।
इसी विभाग के विकास की दृष्टी से, महात्माजी की सम्मति और शुभेच्छा का सन्देश लेकर सन् १६२८ के मई मास में मैं योरोप की यात्रा को निकल पड़ा। योरोप में मेरा मुख्य लक्ष्य स्थान जर्मनी था सो १६२८ के अगस्त में मैं जर्मनी पहुँच गया।
प्रायः एक वर्ष तक जर्मनी की तत्कालीन राजधानी बलिन में निवास किया। वहां पर 'हिन्दुस्तान हाउस' की स्थापना की। उसकी विशिष्ट योजना लेकर १९२६ के दिसम्बर में, महात्माजी से मिलने अहमदाबाद आया । महात्माजी ने देश को पूर्ण स्वतन्त्रता दिलाने का कार्यक्रम लाहौर की कांग्रेस में निश्चित किया । उसके अनुसार मुझे भी तत्काल वापिस जर्मनी जाने का संकल्प छोड़ना पड़ा । जब महात्माजी ने जगविख्यात नमक सत्याग्रह का विचित्र कार्यक्रम शुरू किया और उसके अनुसार सन् १६३० के मार्च में उन्होंने अहमदाबाद वाले अपने सत्याग्रह आश्रम से अपने आश्रम निवासी सभी प्रमुख अन्तेवासियों को साथ लेकर दांडी गांव के विख्यात नमक केन्द्र को लूटने का उद्घोष करते हुये पद
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