Book Title: Jainagam Sukti Sudha Part 01
Author(s): Kalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
Publisher: Kalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
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किया गया । कुल मिलाकर लाखो ऋपि-मुनियो ने, तत्त्व चिंतको और मनीपिया ने, जानियों एव दार्शनिको ने इस विषय पर गम्भीर अध्ययन, मनन, चिंतन और अनुसंधान किया है । इस विपयको लेकर भिन्न २ समय में सैकड़ों राज्य सभाओं में धन-घोर और तुमुल शास्त्रार्थ हुए है। इसी प्रकार इस विषय पर मत-भेद होने पर अनेक प्रगाढ पाडित्य सपन्न दिग्गज विद्वानो को देश निकाला भी दिया गया है । शास्त्रार्थ मे तात्कालिक पराजय हो जाने पर अनेक विद्वानो को विविध रीति से मृत्यु-दड भी दिया गया है। इस प्रकार भारतीय दर्शन-शास्त्रो का यह एक प्रमुखतम और सर्वोच्च विचारणीय विपव रहा है।
जैन दर्गन ईश्वरत्व को एक आदर्श और उत्कृष्टतम ध्येय मानता है, न कि ईश्वर को विश्व का स्रष्टा भार नियामक । मतएव इस पर अपेक्षाकृत अविक लिखना अप्रासगिक नहीं होगा।
जैन दर्शन की मान्यता है कि सपूर्ण ब्रह्माड में यानी अखिल लोक में केवल दो तत्त्व ही है । एक तो जड रूप मचेतन पुद्गल और दूसरा चेतना शील भात्म तत्त्व।
न दो तत्त्वो के आधार से ही संपूर्ण विश्व का निर्माण हुआ है । सारे ही गमार के हर क्षेत्र, हर स्थान, और हर अग में ये दोनो ही तत्त्व भरे पड़े हैं। कोई स्थान ऐसा नहीं है जहाँ कि ये दोनो तत्त्व घुले मिले न हो। उनकी अनेक अवग्याऐ है, इनके अनेक रूपान्तर और पर्यायें है, विविध , प्रकार की स्थिति है, परन्तु फिर भी मूल में ये दो ही तत्त्व है । तीसरा । और कोई नहीं है।
जड पुद्गल बनेक शनितयो में विखरा हुआ है, इसकी सपूर्ण शक्तियो का पता लगाना मानव-गवित और वैनानिको के भी वाहिर की बात है। रेडियो, वायरलेस तार, टेली विजन, रेडार, वाप्पशक्ति और विद्युतपक्ति, अणुवम, कीटाणुबम, हाईट्रोजन बम, इथर तत्त्व, कास्मिक किरणें चादि विभिन्न गचित्तयां इस जड़ तत्व की ही रूपान्तर । ईस प्रकार की अनतानन मस्तियो इन जड तत्त्व में निहित है, जो कि स्वाभाविक, प्राकृतिक