Book Title: Jain Yug 1932
Author(s): Harilal N Mankad
Publisher: Jain Shwetambar Conference

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Page 19
________________ ता. १-२-३२ -जैन युग - (अनुसंधान पृ. २२ परथी.) એજ્યુકેશન બોર્ડની કાર્યવાહી. भगवान महावीर की शिष्या और उनके सम्पूर्ण साध्वी આ સંસ્થા તરફથી દર વર્ષે લેવામાં આવતી શેઠ संघ की प्रमुख आर्या चन्दनबाला का नाम जैन जगत में सारामा मानना ही पु३५ ॥ भने म. सौ. प्रसिद्ध है। चन्दनबाला व उनकी शिष्या मृगावती धोरीमा ७ सौपाली पामिनी तपस्था से कर्ममल को दूरकर कैवल्य व निर्वाण को प्राप्त नाभी परीक्षा। यानुसार स. १६८८ ना भागस२ वह 3 રવિવાર તા. ૨૭-૧૨-૩૧ ના રોજ બોર્ડના જુદા જુદા हई थी। भगवान महावीर की पूर्व माता देवानन्दा ब्राह्मगा वामा मापी ती. मा पक्षिागाभा मेसवा मारे ने भी अपने पति ऋषभदेव के साथ दीक्षा ग्रहण कर मोक्ष सभा, भावनगर, पालीताया, २, सुरत, सीमी, प्राप्त किया था। ऐसे और भी कई दृष्टान्त दिये जा सकते पासपुर, मेडा, मामा, शिगार, म३य, सभी, मोरस, है जब कि साध्वियां आत्मिक चरम उत्कर्षता केवल ज्ञान भया, पा1, 990, यश६, BI, भलुवा, मुसा, सारी. व मोक्ष को प्राप्त हुई है। रतलाम, बागा, 2ी, सांगली, पिटरी साही, मोटाइ तपुर, ४३.२, २, नारद, पारण , स्त्री शिक्षा के विषय में मी जैन शास्त्र अवलोकन करने રાંદેર આદિ સ્થળોના તથા મુંબઈના કુલ મળી ૧૦૦૩ से प्रतीत होता है कि उस समय त्रियो को अच्छी शिक्षा विधार्थी मानी १२३ भगा ती माया , ५३५, दी जाती थी। साध्वियां एकादश अङ्ग शास्त्रोंका अभ्यास न्यासी पानी धार्मिक तथा प्राकृतनी परीक्षामानां करती थी। एकादश अडों के ज्ञानको धारण करनेवाली २२ २i ८५. विद्याथी माता સ્ત્રી વર્ગની પરીક્ષાઓને ઇનામ માટે શ્રીયુત મેઘજી साध्वियों की संख्या भी कम न थी। पुरुषो को जैसे ७२ સેજપાલ તરફથી રૂપીઆ પાંચસો તથા શ્રી હીરાચંદ વસનજી कला का अभ्यास कराया जाता था वैसे स्त्रियों को भी ६४ पौवासा तथानाम भाटे ३१. सा भन्या छे. कला का अभ्यास कराया जाता था। इन ६४ कला में मश:-श मेघ wia, नक्षा नृत्य, गीत, ज्ञान, विज्ञान, काव्य, व्याकरण, गृहिणीधर्म, भगवानदास पेरी, मनेश: मोहनशानाय सा-ये पाक क्रिया, केश बन्धन, आभूषण धारण, वाणिज्य प्रभृति . मित्रो सपथे। मान सभासयया. પાશાળાઓ તથા વિદ્યાર્થીઓને:-જે જે પાઠશાका नाम विशेष उल्लेख योग्य है । स्त्री शिक्षा में कोई तरह गामा तथा विद्यार्थी माने सन १८३१-३२ भाटे संरया की ब्रटी नहीं थी यह साफ मालूम पड़ता है। तया भEE-A५ मा वामां मातमान दिग्विजयी ब्राह्मण पण्डित हरिभद्र को जैन धर्म में अनुभव पत्र: भो म भासा मा५t reylप्रतिबोधित करने का श्रेय 'याकिनी महत्तरा' नाम्नी एक वामां आवे छे. मे मतi भ६६ गया २४समि५ साध्वी को ही है। जैन धर्म अङ्गीकार करने के बाद पण्डित ५ ४२वामां भावशे. ' न तोमर न्युशन मोड हरिभद्र अपने पाण्डित्य एवं चारित्र गुण से आचार्य हरिभद्र गमिटीनी सना ता. २८-१-१२ ना मूरि नामसे विख्यात हुए। उन साध्वी का आप पर इतना भीती. (1) श्री वाय पानाय शासना नामा प्रभाव था कि आपने अपनी अमूल्य ग्रन्थों में अपना “याकिनी ५२ विया तासात तेभने ते ५६ ५२ या सुनु” नामसे परिचय दिया है। इतने बडे विद्वान आचार्य रहेका विनाति ४२वामां मायू. (२) सन १८३१-३२ भाट पर एक साध्वी का ऐसा प्रभाव होना उन साध्वी स्त्री के ' ક, મંજીર કેથેલ કૅલરશિપ અને પાઠશાળાઓને મદદનો બીજો હત મોકલી આપવા કરાવ્યું. चारित्र एवं आत्मिक उन्नति की उत्कर्षता का परिचय प्रदान कर रहा है । उस काल में एक साध्वी इतने बड़े अन्यमत के महाराज श्रेणिक की रानी धारिणी देवी भी राजसभा में यवनिका के अन्तराल में बैठी थी परन्तु दोहृद पूर्ति के समय था यह बात सावाया समय श्रेणिक राजा के साथ हाथी पर चढ कर नगर के में ज्ञानानुशीलन की कितनी उत्कर्षता थी यह साबित करती है। बीच से हो कर जानेका वर्णन भी मिलता है। इससे यह परदे की अधुना जैसी कठोरता प्रचलित है उस काल प्रतीत होता है कि परदे का कडाई बिलकुल नहीं थी परन्तु म वेसी नहीं थी। तीर्थङ्करों के समोबसरण में या धर्माचार्यों साधारण तथा राज परिवार व उच्चकुल की खीयां अन्तःपुरमें को बन्दन करने को स्त्रीयां बिना किसी रुकावट के जाती ही प्रायः करके रहती थी। अधुना जैसी प्रचण्ड स्त्री स्वाधी नता पाचात्य देशों से आमदनी होकर अपने देशमें प्रचलित थीं ऐसी बहुत घटनाओं का वर्णन जैन साहित्य में मिलता होनी आरम्भ हई है वैसी पुराने जमाने में नहीं थी। पर है। राजा की रानियां किसी प्रयोजन से सभा मण्डप में स्त्री को मानसिक व आत्मिक विकाश करने में कोई रुकावट उपस्थित होने पर यवनिका के अन्तराल में उपवेशन करती नहीं थी और परिपार्श्विक बातावरण भी ऐसा था कि प्रत्येक थी। स्वों का फल श्रवण करने को भगवान महावीर की स्त्री स्वच्छन्दता से अपनी उन्नति कर सकती थी। माता त्रिशला राजसभा में यवनिका के अन्तराल में बैठी थीं। 'ओशवाल नवयुवक से उधृत.

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