Book Title: Jain Yug 1932
Author(s): Harilal N Mankad
Publisher: Jain Shwetambar Conference

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Page 179
________________ १५-१२-३२ - न युग - १७८ - श्री केसरियाजी तीर्थकी रक्षा आपके हाथमें है. जबतक आपलोग पन्डोंका घर भरते रहोगे तबतक (१) भन्डाग्ग्वातसे कुल आमदनीका ३५) पेंतीस रुप्या वो लोग आपको हर प्रकारसे तंग करते रहेंगे, तीर्थपर नाना सेंकडा लेते है. प्रकारके अडेंगे लगावेंगे. १०० वर्ष पूर्वका इतिहास आप (२) मूल गंभारेके दरवाजेमें जो पेटी रकम्खी रहती है, 'पह चुके हो. किस प्रकार इन लोगोंने तीर्थपर जिसका पलांठीकी पेटी कहते है उसमें जो आमद उतपात मचाया है यह आपसे छिपा नही. सरकारी घोषणा हो उसमें ३५) पेतीस रुप्या संकडालते हैं. पत्र इसके साक्षी है कि भगवानके चढावेमें आया ग्राम यह खा ३) आरतीमें पाटपे धेालमें जो आवे से सब लेते है. गये. देसावरोंसे आइ हुई हुंडी चिठीयां यह खा गये. दुध - आरतीमें १-) चंड़े तो भंडार जमा हो सो प्रथम तो देनेवाले जानवर यह ले गये आपके भंडारका खेाल ५२००० "१) चढताही कम है और अब उसमें भी ३५) बावन हजार निकाल ले गये इत्यादि गडबडों के कारण विक्रम मेकडा लेने की मांग पेश हा गइ है. संवत १८३१ में सरकारी इन्तजाम तीर्थपर कराना पड़ा, (२) इंगरपुर स्टेट को तर्फसे १ ग्राम मौट नामक भगपर आप लागांकी आंख तब भी न खुली और इनका पोषण वानको सेवा पूजा वास्ते मेट हुवा उसकी कुल करते गये, जिसका नतीजा यह निकला कि आज इन पन्डे। आमदनी खा रहेहै. को इतनी हिम्मत है। गइ कि तीर्थही वैष्णव सम्प्रदायका (५) भन्डारकी तर्फसे रोजाना शान्ति स्नात्रकी पूजा होती बताने लगे. क्या अब भी इनका गरीब समझकर मदद कंगगेः .. है. चांदी सोनेको छोड़ सभी ले जाते है अब चांदी इनका नमक खिलानेका फल देख लिया. अबतो साव सोनमें ३५ सेकडा लेनेकी मांग पेश है. धान हो जाओ. पहले पूजन के समय पन्डे लोग और जैन (६) यदि कोइ भगवानकी अंगरचना करावे तो पन्डोको मन्दिगके भान्ति चुपके खड़े रहतेथे फिर इनाम मागने लगे - म माफक मिलता है. बढते २ आपका हाथ पकडने लगे और अब तमाम आमदनी ३। का अंगीमें पन्डोको ११ मिलते है खाने लगे तब भी आप इनका गरीब समझ मदद कोयही ६) की अंगीमें पन्डोको २।, जाते हैं और मेवाड गव्यसे प्रार्थना करते हैं। तीर्थकी रक्षा १३)- की अंगामें पन्डोको ३||-, . करा. भाइ साहिब, जग ध्यान तो कीजिये रक्षा ना आपके १६) की अंगामें पन्डोको ३||=, हाथमें हैं, मेवाड राज्य क्या आपसे कहने आता है कि इनका २३)- की अंगामें पन्डोको ३॥-, साहायता कीजिये. आप हो साहायता करके आफत मौत २७ की अंगी पन्डोको १५। , खरीदते हो, देव द्रव्यका नाश कगते हैा. महरबानी करके ४१) को अंगीमें पन्डोको ४), पहिले धरका सुधार ता कीजये जो कुच्छ आप पन्डे लागेका ५१॥ की अंगामें पन्डोको १५, नगद वादला देते हो, साहायता करते हो, पापण करते हा पहले वे तो २॥ १२॥ बंद करा. पन्डे तो आपका प.म झुक जावेंगे, जैसे आप १०१) की अंगीमें पन्डोको), चल.वेंगे पैस चलेंगे, इस बाम्ते आजसे नियम कग कि जब १०९। की अंगामें पन्डोको १५ , नगद वादला . नक हमारी तुच्छा अनुमार तीर्थकी व्यवस्था न होगी तबतक २॥ १२॥ नीर्थ केसरियाजी पर एक पाइ भी पन्डाका न देंग, न काइ (७) जब कोइ वडी पूजा पढाते है नवपद, सत्तरभेदी. ऐसा काम करेंगे जिससे पन्डेकि हाथ मजबूत है। वा इनकी पंचकल्याणक, आदि तो उसमें इस प्रकार पन्डोको परवरिश हो या शक्ति बढे. यदि केवल वाली बालनाही मिलना है और रोजाना दो दो चार चार पूजा होती है. हमने बन्द कीया और दुसरे काम बराबर जारी राव तेाभी ०|- स्नात्र पुजामें आरतीके । सामानक । पन्डेका पापण हाता ही रहेगा, और नाथपर उपद्रव करनेसे लाजमी लीये जाते है. नहीं चुकेंगे. नित्य नये झगडे समाजके पीछे खट्टे हाग. इस १॥- पंच कल्याणक पुजामें आरतीके ।। सामानके बाम्ने वाली वालनके साथ साथ नीचे लिव दुसर काम भी १.) लाजमी लिये जाते है. फाग्न गक दिजये. (हन पन्द्रा लागेका श्री केसरियाजी २॥ अष्ट प्रकार्ग पुजामें आरतीके ॥ सामानके नीर्थपर इस प्रकार आमदनी हाती है.) २। लाजमी लिये जाते हैं. 1 " .

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