Book Title: Jain Yug 1932
Author(s): Harilal N Mankad
Publisher: Jain Shwetambar Conference

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Page 62
________________ ૬૨ - न युग - ता. १५-४-३२ जहां कठिन हो गया था वहां विद्या और संस्कृतिके शिक्षा- आचार्य श्रीआत्मारामजी महाराज इन नवयुगके प्रसिद्ध जैन स्थानोंकी रक्षा करना कहां संभव था । बस पीछले सातसौ साधु और विद्याप्रिय व्यक्ति थे । उनकी भावना चारों ओर वर्ष तकका भारतका इतिहास इसी प्रकारकी अव्यवस्था विद्याप्रचारकी थी पर वे उसे अपने जीवन में सफल नहीं कर और अन्धाधुन्धीसे भरा हुआ है; और वही भारतके उस पाये । उनके अंतेवासी विद्यमान प्रसिद्ध आचार्य विजयवल्लप्राचीन ज्ञानसूर्यको आवृत करनेवाले विपत्ति-स्वरुप बादल भसूरीने अपने गुरुकी भावना को मूर्तिमंत करनेका व्रत थे । इस अन्धकारयुगमें हमारी ज्ञानज्योति बहुत कुछ नष्ट लिया, और जहां तक मैं जानता हूं, उन्होंने पिछले पश्चीम होगई-हमारे वे सब पुराने गुरुकुल विद्यालय, पाठशालाथें तीस वर्ष सीर्फ इसी व्रतके पालन और पूर्णता निमित्त और सरस्वीत-भंडार, जो प्रजाकीय जागृति और ज्ञानप्रा- बिताये हैं। पंजाबका यह गुरुकुल उन्हींका मूर्त प्रयत्न प्तिके मुख्य स्रोत समान थे वे लुप्त हो गये ओर सर्वसाधा- है। इसकी उम्र तो बहूत छोटी है पर इसके कइ वर्ष रण जनता एक प्रकारसे ज्ञाननेत्रविहीन जैसी हो गई। पहिले ही उन आचार्यने गूजरातमें अनेक विद्या संस्थाएं ____ जब से इस देशमें अंगरेजोंका शासन शुरू हुआ खुलवा आ खुलवाई हैं जिनमें बंबइका महावीर विद्यालय सबसे अधिक और देशकी वह अन्धाधुन्धी कुछ शांत हई तब से फिर प्रसिद्ध है । अब तो यह विद्याकी भावना यहां तक फैल विद्याका वह टिगमिगाता हुआ दीपक कुछ तेज होने लगा। गई है, कि मारवाड जो सबमें पिछडा हुआ देश है, उसमें अंगरेजों के साथ इस देशमें अनेक चीझें आई उनमें एक भी पाठशालाएं, विद्यालय और गुरुकुल स्थापित हो रहे हैं। विद्याकी भावना भी थी । एक तरफ से राज्यकर्ताओंने अपने यहा तक कि स्थानकवासा भाई जा विद्याक क्षत्रम सबक सुभिते के लिये अपने ढंगसे शिक्षा देना चाहा और अपनी पार्छ गिन जात थ उनक भा दा गुरुकुल मारवाड-मन संस्कृतिके अनुरूप शिक्षालय (स्कुल्स, कोलेजिस ) स्थापित और एक भारत और एक पंजाबमें चल रहे है। किये । दूसरी तरफसे राष्ट्रहितैषी और अपनी संस्कृतिकी (अपूर्ण) रक्षा चाहने वाले महानुभावोंने जातीय तथा धार्मिक भावना જૈન પાઠશાળાને મદદ. ન કરે એજયુકેશને બેડ તરફથી શેઠ સારાભાઈ મગનपर विद्यालय स्थापन करने शुरू किये । उन महानुभावोंमें ભાઈ મોદી પુરૂષ વર્ગ ધાર્મિક તથા પ્રાકૃત હરીફાની અને एक तेजस्वी आत्मा स्वामी दयानंदकी भी थी, जिन्होंने जस्षा आत्मा स्वामा दयानदका भा था, जिन्हान १४२४ ना GिR१२ वाली भी परीक्षामा सारगुरुकुलका लुप्तप्रायः नाम फिरस मूर्तिमंत करनेका उपदेश नाना श्री मा४ि५० पाशाणामांथा ५ विधाथामा दिया। शुरूमें कांगडीका गुरुकुल अस्तित्वमें आया । उसका माता ते स सा मा मा पास ता. असर सनातन धर्मावलंबी भाई, जो उन दिनमें आर्थसमाज ઉપરોક્ત પરીક્ષાઓને પ્રાકૃતનાં કઈ પણ ખંડમાં જે પાઠશાળામાંથી ઓછામાં ઓછા ચાર વિઘાથી આ પાસ થાય के कट्टर विरोधी थे उनक ऊपर भी पड़ा और उन्होंने भी तने 3.3.) तयार पाशायी सात तेथा थुविधाजहां तहां ऋषिकुल आदि संस्थाएं स्थापन की । इस तरह थामा पास याय ते पाने ३१. ७ ) 03 44 भा2 आर्य समाज और सनातनी लोगेका संघर्ष चलही रहाथा शे: सारामा मानना माही त२५या मद६ मा५३॥ उसी बीचमें हमारे समाजके लोग भी जागे । शुरूमें जहां २ આ નિયમ અધીન થી બીવિજયજી જૈન પાઠશાળાतहा पाठशालाएं-खासकर गूजरातमें खुली । फिर बोडिंग ભાવનગર શ્રીયુત શેઠ સારાભાઇ મગનભાઇ મોદીએ રૂ. युग (छात्रालय युग) आया । एक तरफसे धार्मिक शिक्षाके त्रीस मह 4 . नियम त२५ सा शापामाना व्यवस्था सानु लिये पाठशालाएं और दूसरी तरफसे स्कूल और कोलेजमेंस ધ્યાન ખ ચતાં આશા રાખવામાં આવે છે કે આ પાતાની पढने वाले विद्यार्थिओंके सुभाते के लिये छात्रालय; इस पावागामे तने सपास २०३ ५२। २५ भ६६ तरह दो प्रवृत्तियां अलग २ चल रही थी पर दोनों में त्रुटि ४३. ' सौभाग्य 5. ll, थी जो धीर २ मालूम होने लगी। ऐसा मालूम हुआ कि . भाग भत्रा, જે દેવે અકેશ બર્ડ शिक्षाका सारा प्रबंध स्वधीन रुपसे करना और विद्यार्थिओंको संस्थामें ही रखकर अपनी इच्छाके अनुसार शिक्षा '' શ્રી જૈન દવાખાનું પાયધુની મુંબઇમાં ગત માર્યા માસમાં ૪૨૫ પુરૂષ દરદીમા ૩૮૪ સ્ત્રી દરદીઓ તથા ૨૯ ૯ देना । इस भावनाने अपने समाजमें भी गुरुकुल स्थापित * બાળક દરદીઓ મળી કુલ ૧૧૮ દરદીઓ એ લાભ લીધો करवाए । इनमें पालीतानाका गुरुकुल पहिला है । स्वर्गीय ने सरेश ४003ना. Printed by Mansukhlal Hiralal at Jain Bhaskaroday P. Press, Dhunji Street, Borubay and published by Harilal N. Mankar for Shri Jain Swetamber Conference at 20 Pydhoni, Bombay 3

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