Book Title: Jain Yug 1932
Author(s): Harilal N Mankad
Publisher: Jain Shwetambar Conference

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Page 176
________________ १७६ - यु - ता. १-१२-३२ “श्री अखिल भारतवयि ओसवाल महा सम्मेलन का भविष्य." वर्तमान समय संसारके इतिहासका वह दारुण और इसमें सम्मिलित होने में कुछ मन्देह रहता है तो हम इसका जटिल भाग है कि जो आजतक विश्वसाहित्यमें आप नहीं नाम ही क्यों न बदल दें ? समय कहता है कि आज यदि देखेंगे । वर्षों और सदियोंसे सोये हुए समाज, जातियाँ समाजको रसातल पर पहोंचाने वाली सबसे बुरी बात है तो और देश आज पुनः जाग रहे हैं और संसारमें अपने अस्तित्व वह अनैक्यता और फूट है, अत: हमें इस अनैक्यताक और उत्थानके लिए शक्तिका प्रयत्न कर रहे हैं। इतनाही आभासको हटा देना चाहिए । आज सारा भारत एक होना नही, आज सारे देश और समाज प्रतिस्पर्धा (Competition) चाह रहा है. सार समाज एकताके दृढ मूत्रमें बन्ध रह हैं, के विशाल क्षेत्र में दौड लगा रहे हैं, और इतिहासवेत्ता अपनी उस समय हम अपनी समाजके ही लोगोंसे पृथक रहे हैं, कुटीसे देख रहे हैं कि कोन देश और समाज इस दौड़ में यह पार्थक्य हास्यास्पद और विनाशकारी है। जिस समय सर्व प्रथम आता है ? संक्षेप में कहें तो यह विश्व-जागृ- अछूत आन्दोलनस भारत गूंज रहा है. भारतीय स्वतन्त्रता तिका काल है । जब सारे देश और सारे समाज अपनी २ मार्ग शोधनके लीए एकताका बिगुल बज रहा है, अछूत पूर्ण जागृति एवं उन्नतिमें जुट रहे थे, तब हमें प्राय: यह और उच्च जातिक हिन्द लोग बिना भेदभावके पारस्परिक शंका हुआ करती थी कि क्या सारी जातियाँ अपना काम सम्पर्कमें जुट रहे हैं. उस समय हमाग ओसवाल समाज करलेंगी और ओसवाल जाति तबतक भी सोती रहेगी ! कुछ समयसे बिखरे हुए अंगोकों भी एकताके मूत्रमें आबद्र जब सारी जातियाँ मीलों आगे निकल जायंगी और तब भी न करे, यह दुःखद है। यह वर्षोंका सोया हुआ समाज उनकी' पलायन--वनि सुन सम्मेलनका प्रधान उद्देत्य समाज सेवा है, सामाजिक कर भी सोता ही रहेगा? किन्तु अब हमारी शंका दुर हो कुरीतियों का नाश करना है. पारस्परिक संगठन करना है । गईं-अब ओसवाल समाजके शुभचिन्तकोंने इस ओर ध्यान इसमें हमको अपना दृष्टिकोग विस्तृत बनाना पडेगा, आज दिया है, इनही समाजों से पाठ पढ़ना सिख लिया है। समय संकुचित रहने का नहीं है । सम्मेलन एक सामाजिक इसके प्रमाणमें कदाचित् मुझे कुछ कहने की आवश्यकता नहीं संस्था है । वह तेरा पंथी, सम्वेगी, और स्थानकवासी सारे है। गत १५, १६, १७ अक्टूबर के अजमेरके श्री श्वेतांबर समाजका है, तो अब हमको देखना यह है कि अखिल भारतवर्षीय ओसवाल महासम्मेलन से सभी परिचित सम्मेलनका नाम क्या हाना चाहिए? इस विषय में हैं-अखिल ओसवाल समाज को एक सामाजिक सूत्रमें बांध- 'जैनयुग' केता. १ नवम्बरके अंको श्रीमान् गुलाबचंदजी नेका यह प्रथमही प्रयास है। ढहा एम. ए. जयपुरनवासीका लेख ध्यान देने योग्य है। सम्मेलन हो गया, लोगोंको चित्तरंजनका अवसर मिला श्रीमान ढहाजीने लिखा है कि सम्मेलनका नाम श्री अखिल 'किन्तु अब सम्मेलनको थोडा कार्य करना चाहिए ! जो भारतवर्षीय ओसवाल महासम्मेलन के बदले श्री अखिल भारत'प्रस्ताव पास हो गये हैं, उनको क्रियात्मक रूपमें लीया जाय, वर्षीय श्वेतांबर संव सम्मेलन अथवा महासम्मेलन रखा जाय। फाइलों ही में न पड़े रह जाय : आगामी सम्मेलन तक श्रीमान् ढहाजीकी इस माननीय संमतिका हम हृदयसे समर्थन प्रत्येक प्रस्तावको रचनात्मक रूप देकर कार्य सम्पादन करना करते हैं और संमेलनके कार्य कर्ताओंस प्रार्थना करते हैं कि चाहिए। जिससे अन्य लोगोंमें सम्मेलनके प्रति श्रद्धा हो, और वे इस पर पूर्ण रूपसे विचार करेंगे । इस नामसे किसी भी जाति सेवा के भाव दिन दुने रात चौगुने बढे। आदमीको विरोध न होगा। ओसवाल, पोरवाल, हमद, सम्मेलनके नामके विषय सम्मेलनके प्रारंभसे बल्कि और श्रीमाल, सब श्वेताम्बर समाज के अन्तर्गत है, यह सब उससे भी पहिलेसे बड़ा विवाद चल रहा है। सम्मेलनके मानते हैं । प्रारंभिक आयोजकोंने इसका नाम श्री अखिल भारतवर्षीय वेताम्बर शब्दसे कोइ भाई डर न जाय कि यह तो औसवाल महा सम्मेलन रखा था। इस नामसे सम्मेलन में धार्मिक नाम हो गया, और हमारी सम्मेलन तो केवल जातीय केवल वेही जनसमूह भाग ले शकते हैं जो ओसवाल हैं, और सामाजीक संस्था है। श्रीमाल, पोरवाल, हुमड़ इत्यादि जातियोंके विषयमें शंका थी। चाहे इस शब्दका प्रयोग अबतक केवल धार्मिक रूपमें किन्तु जब हमें इस शंकाको दूर करना चाहिए. यदि ही हुआ हो, परन्तु अब हमको इसका जातीय प्रयोग करना इस नामहे श्रीमाल, पोरवाल, और हमड इत्यादि जातियोंको (अनुसंधान पृ. १७५ के उपर.) Printed by Mansukhlal Hiralal at Jain Bhaskarodny P. Press, Dhunji Street, Bombay 3 and published by Harilal K Munkar for Shri Jain Swetamber Conference at 20 Pychoni, Bombay

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