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पेथापुर कॉन्फरन्स इतने प्राणीयोंके मोक्ष प्राप्त करनेके साधनमें खामी डालमा है. दूरसे जो कलह, कदाग्रह, दुराचार, दुष्ट रिवाज वगरह इसवक्त हमारीमाजमें प्रचलित होकर हमको तकलीफ दे रहे हैं वह सब स्त्रीयोंके सुशिक्षित होनेसे स्वयंमेव दूर होसकते है. तीसरे स्त्रीवर्गके शिक्षापानेसे उनके संतान अच्छे होसकते हैं क्योंकि बच्चेका शुरु जमाना जिन्दजीका उसके माता, बहिन, भुवा बगरह स्त्रीयोंकी सहोबतमें गुजरता है
और पंदरह वर्षकी उम्र पहीले उसका दिमाख ऐसा कोमल और स्वच्छ रहता है कि उसवक्त जो बात अच्छी या बुरी उस बच्चेके दिमागपर नक्श कर दी जाती है वह उसकी आयंदाकी उम्रमें उसके भले बुरेके वास्ते हमेशा कायम रहतीहैं और उन आदतोंके मुवाफिक ही वह अपना भला बुरा आचरण रखताहै. अगर माता सुशिक्षित हो, धर्ममें दृढ हो, अन्य देवको न पूजतीहो, होली, दीवाली, सीतलाअष्टमीके प्रचलित बुरे रिवाजोंको न मानतीहो तो उसके संतानभी उसहीके मुवाफिक करंगे. घरके अच्छे बुरेकी मुंतजिम स्री है और जब स्त्री मूर्ख हो तो उस घरकी उच्च दशा कहांतक आ सकती है आप साहब विचार कर सकते हैं. जितने दुनियामें बढे २ आदमी मसलन नैपोलीअन, वाशिंगटन, मेकाले वगरह हुवे हैं वह सब अपनी माताओंके सुशिक्षित होनेसे हुवे हैं. अपने इतिहासपर नजर डालनेसे मालूम होगा कि अपने सब तीर्थकरोंके बारेमें साधुओंसे साधवीओंकी और श्रावकोंसे श्राविकाओंकी संख्या ज्यादा रहीहै तो खयाल करनेकी बात है कि उनको धर्मका तत्व और रहस्य मालुम हुवा जब उनकी संख्या बढी और बगर इल्मके ऐसा ज्ञान होना असंभव है इसवास्ते अपनी आयंदाकी बहबूदी और बहतरीके वास्ते हर सच्चे जैनीका प्रथम कर्तव्य है कि स्त्री शिक्षाकी तरफ ज्यादा तवजह देवे. अकसर यह सुनने में आता है कि स्त्रीयोंको पडाकर क्या उनसे कमाइ करावोगे और इसका जबाब यह सुननेमें आताहै कि नहीं कमानेको तो हमही बहुत हैं परन्तु यह जबाब ना काफी और नादुरुस्त है. स्त्री शिक्षासे हमारा मतलब यहही है कि अवल तो उन का खुदका कल्याण हो और दूसरे हमारी संतान अच्छी हो. जब संतान अच्छी होगी तो हमारे स्त्री वर्गनें हमारी कमाई में इनडाइरैक्ट ( indirect ) मदद दी. अलावा इसके जब हम अपने व्यापार, धंधे या नोकरीमें हमारा बहुतसा वक्त लगाकर काम करते हैं तो फिर घरके इन्तजाम का बोझभी हमारे ही शिर पर डालना कितने बडे जुल्मकी बात है? अगर हम अपने घरका इन्तजामभी खुद ही करते हैं तो तो हमारे दिमागपर ज्यादा महनत डाली जाती है कि जो हमारे दूसरे कामों के लिये फिर निकम्मा हो जाता है और हम को उसही कदर नुकसान पहुंचता है और जो हम अपने घरका काम नहीं देखते हैं तो उसमें नुकसान लगता है अगर स्त्रीवर्ग सुशिक्षित हो तो वह घरका काम अच्छी तरह चलाकर हमारी कमाईमें बराबर मदद देनेवाली हो जाती है. स्त्री शीक्षाको पुष्ट करने वाली सबसे ज्यादा, मजबूत और अंगीकार · करने लायक एक यह दलील है कि अपने परमोपकारी श्री रिषभ देव स्वामी ने अपनी पुत्री ब्राझोकी अठराह प्रकार की लिपि सिखवाई है और स्त्रीका पढाना ठीक न होता तो अपने आदीदेव आदी गुरु यह बात कैसे करते-आजकल जो एक यह खयाल प्रचलित होरहा है कि स्त्री पढनेसे रांड होजाती है यहभी मूर्खताका चिन्ह है अगर जैसाही हो तो कुल यूरोप की स्त्रीयां रांड होनी चाहीये और ः कुल हिंदुस्थान की स्त्रीयां सवाराण होनी चाहीये परन्तु देखने में इसके विप्रित आता है. अपनी समाजमें कर्म को प्रधान माना है. कर्मों के फलोंसेही अपनी अच्छी और बुरी हालत होतीहै. फिर उसके खिलाफ किसी तरह का फुजूल डर अपने दिलों में