Book Title: Jain Shwetambar Conference Herald 1905 Book 01
Author(s): Gulabchand Dhadda
Publisher: Jain Shwetambar Conference

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Page 396
________________ १९०५] श्री eat afat व्यवस्था. ३६३ हो उसको कोनकर की कोशिशपर श्रीतंव नें खोलकर टीप कसदी और अब जीर्ण पुस्तकोद्वारका भी विचार प्रगट किया तो इस कार्य वाहीले जो पुस्तककि गलकर नष्ट होनाते वह बद तूर कायम रहेंगे. अगरचे इस टीप के काम में बहूत समय और जियादा द्रव्य खर्व हुवा है परन्तु इसमें श्री संघ जैसलमेरका दोष नहीं मालूम होता है क्योंकि श्री संघके इस पत्रके लेखानुसार इस काम में रोक टोकका बखेडा किसी ना आकबत अंदेशकी तरफ से डाला गया था कि जिसकी सफाई अब श्री संघनें अपना फर्ज समझकर करादी और आयंदा भी श्री संघ जैसलमेर की यह ही कोशिश रहेगी. इस श्री संघके लेखते हमको बहूत ही हर्ष उत्पन्न हुवा है; श्री संव जैतलनेरको कोनकरनसके सुधारेके कामोंके साथ इत्तफाक है यह उनकी हम दर्दि और उत्तम समझका नतीजा है और जिसतरह पर अबतक चाहे किसी कारण से कोनकर की कार्यवाही में जो विलम्ब डाला गया आयंदा न डाला जावे क्योंकि पैसा व्यर्थ खर्च होना ठीक नही है; पुस्तकें किलेपर रखकरही लिखवाई जानेमें कोनफरन्सका कोई हर्ज नहीं है मतलब कामसे है. लेखक खोंटी नहीं इसके वास्ते श्री संघ इकरार करता है कि लेखक हरगीज खोटी नहीं होवे गें; जीर्ण पुस्तकोद्धारका काम कोनफरन्सनें अपने हाथमें लिया है परन्तु हाथमें पैसा होनेके मुवाफिक काम होसकता है. अलावा इसके जो पुस्तकें कई जगह मिल सकती हैं या छप चुकी हैं उनके उद्धारमें सकल संघका पैसा खुद जैसलमेरका संबही लगाना पसंद नहीं करेगा अलवत्ता जो अपूर्व पुस्तकें हैं उन पर जुरूर लक्ष दिया जायेगा. पुस्तकों के छपाने में जो असातना का खयाल प्रगट किया गया है, उसपर जो विचार अपने वर्तमान, बुद्धिमान, विद्वान मुनि मंडलका हो उसके मुवाफिक काम करने का अपना फर्ज है मन्दिरोंकी सेवा पूजाके प्रबन्धके लिये कोनफरन्सकी तरफ से योग्य गोठवण हर जगह होती है, जैसलमेरतो एक तीर्थ भूमि है इस तरफ कोनफरन्स अवश्य ध्यान देगी. गरजकि हम अपने जैसलमेरी भाईयों का बहूतही उपकार मानते है और उनकी इच्छानुसार लिखारियों का इन्तजाम करके जैसलमेर भेजने के विचार में हैं. श्री फलोधी तीर्थकी व्यवस्था. ( हमारे प्रतिनिधिकी तरफ से ) सम्बत १९५६ को सालमें श्री फलोधी - तीर्थके रक्षण और सुधारेके वास्ते “ श्री फलोधी तीर्थोन्नति सभा " कायम हुई थी. इस सभाका प्रथम कार्य आपसमें सम्प बढानेका था कि ओ इस तरह पार पड़ा कि इस सभा के द्वारा यात्रियोंमें परस्पर ओलखाण होकर प्रीति बढ़ती

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