Book Title: Jain Shwetambar Conference Herald 1905 Book 01
Author(s): Gulabchand Dhadda
Publisher: Jain Shwetambar Conference

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Page 450
________________ बालोंके बिल दुःखानेवाले नयेसे नये टूटे बना बना प्रसिद्ध करते है. ! अब मुकाबला करना चाहिये कि जो कुछ असर लोगों के दिलमें पंडित साहिबों के ट्रैक्ट करेंगे को असर लाला साहिबो के उपदेश करेंगे? कदापि नहीं, क्योंकि जिस धर्मके पीछे लोग अपने जीवन करबान करते हैं उस अपने धर्मकी बुराई करने वालोके साथ इतिफाक किस तरह हो सकता है ? इस बातका सबसे पहिले बंदोबस्त होना जरूरी है और वो यही है कि सब मतोंवाले इस बातकी प्रतिज्ञा करलेवेंकि कोई मत किसी मतसंबंधि किसी प्रकारकी किताब न छपावे! और यह काम खास करके आर्यसमाजकी तरफसे ही प्रथम बंद होना जरूरी है. क्योंकि दूसरे के मजहबको बुरा भला कहने वाली जितनी किताबें छप चुकी है सबको प्रायः समाजने ही उत्तेजित किया है, परंतु यह काम होना मुश्कल सा मालूम होता है क्योंकि जिन लोगों ने प्रायः अपनी आजीविका ही इससे चला रखी है वो ऐसी बातको क्यो पसंद करेंगे ? ___ एक किताब गुरुमुखी मे सिक्खोकी तरफसे छपी है जिसका नाम "हरामजादा कौन याने आर्योंके बे वजा हमलेका मुंह तोड़वां जबाब" है, जबकि ऐसे ऐसे खोटे शब्द एक दसरोको कहे लिखे जाते हैं तो इसका आखरी फल इत्तिफाक ( संप) होगा या और कछ ? पहिले समाजकी तरफसे सिक्खोंको बुरा कहा लिखा गया तब ही सिक्खोने बदलेका जबाब दिया है अन्यथा सिक्खोको कोई जरूरत न थी, प्रायः बहुत ठिकाने देखने और 'सनने में आया है कि लोगोंसे चंदा इकट्ठा करके उसीसे उन्हीं लोगोंको बुरा भला कहा लिखा जाता है, बात यह बनी कि " तेरा ही जुता और तेरा ही सिर.” और अकसर बिचारे लोगोंको जबरन कुछ न कुछ देना जरूर पड़ता है क्योंकि खासकर ऐसे ऐसे मामलों में कितनही हाकम बकील वगैरेहका लोगोंको लिहाज पड जाता है और डर भी होता हैं कि शायद में इस बातमें इनकारी हूंगा तो यह मेरी काम विगाड देगे ! और खास करके ऐसे काममें जाहिरा या पोशीदा जिस किसी मतवाले हाकमका जोर लगता हो लगे बिना नहीं रहता है, इस वास्त यदि गवर्मिट हाकम और वकीलो की बाबत काई खास बंदोबस्त करे तो क्याही अच्छा हो! जो बिचारे लोक नाहक मारे लिहाजके या डरके दंडे जाते है वह बच जावें ॥ एकदा प्रस्तावेजीरा तहसील जिला फिरोजपुरमें फसल अनाज के वक्त पर हाड होकर उपदेशक उपदेश देकर यतीम यतीम ( गरीब ) के नामसे कई साल अनाज इक कर ले जाते रहे, लोक बिचारे मारे लिहाज और डरके देने रहे, उपदेशकोकों भी स्व पड गया ! आखिर किसीने मुंह चढकर पूछी कि साहिब ! आप यतीमावाने में यतीम लिये हमसे चीज ले जाते हैं. आपके यतीमखानेमें परवरिश पाये वह यतीम हमको के फायदा देवगे ? आपकी तालीमको सीख कर हमको बुरा भला कहनेके सिवाय और : कुछ फायदा देवेंगे ? उपदेशक साहिब जबाब न दे सके ! बस इतने में ही बुद्धिमान लो समझ जावें ॥ ॐ शांतिः ॥ एक जैनी जिनाम् ।

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