Book Title: Jain Shwetambar Conference Herald 1905 Book 01
Author(s): Gulabchand Dhadda
Publisher: Jain Shwetambar Conference

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Page 449
________________ 8894] हाय ! आर्यावर्त ! 288 पंडितजी साहिब लिखते हैं कि " जैनमतकी तालीम है कि जैनी बवक्त हाज़त रातक कुत लकडी वगैरहके बरतनमें जरूरत रफा करके सुबह के वक्त जंगलमें उसे मदन करते हैं. * ४१५ वाह ! पंडितजी साहिब ! खूब !!! अखबार हितकारीको आपन जैनशास्त्र माना होगा, अफसोस है आपकी इस धोखे देनेवाली अकल पर पाठकगण ख्याल करें कि पंडि"तीकी बुद्धि कैसी सच्ची तहकीकात करनेवाली है ? पंडितजीको पहिले ध्यानसें यह लेना जरूरी था कि अखबार हितकारीमें जो लेख है किस प्रकरणमें, किस मतलब पर है, परंतु -देना तो धोखा था फिर देखने या सोचनेकी जरूरत ही क्या थी ? और यदि देखा और सोचा भी होगा तो भी जान बूझके ही धोखा देनेके वास्ते या जैनियोंकी झूठी बुराई लोगों दिलमें ठसानेके वास्ते यह परिश्रम कियाहो तो क्या आश्चर्य है ? क्योंकि स्वामीजी की तालीम सत्यार्थप्रकाशमें जाहिर कर रही है कि झूठ बोलनेसे अगलेका मत खंडन होता होवे तो वो झुठ अच्छा है. देखो सत्यार्थप्रकाश सन् १८८४ का छपा. बस यही काम पंडितजी साहिबने भी किया है. अच्छा, पंडितजी साहिब अपने आपको किसी तरां आनंद करें परंतु वाचकवर्गको अखबार हितकारीका लेख जरूर देखने योग्य है सो यदि अवसर हुआ तो फिर कभी इसी पत्रिकामें दिया जावेगा, यहां तो केवल पंडितजीका धोखा ही साबत करना जरूरी है कि पंडितजी जैन मजहब की तहकिकात में जैनमतके सिद्धांतोंके बदल अखबार में किसीकी लिखी बातका सबूत देते हैं, वाह पंडितजीकी पंडिताई ॥ फिर पंडितजी साहिब लिखते हैं कि जैनमतकी तालीम है कि जैनीको स्थूळ (ज्यादह) झूठका त्याग, रत्नकरंड सफा ६८" वाह पंडितजी साहिब ! खूब प्रमाण दिया जाता है ! भला आपने जो स्थूल शब्दका अर्थ ज्यादह लिखा है क्या कदापि वो भी रत्नकरंडमें लिखा है ? कदापि नहीं, तो भला आपका दिया रत्नकरंडका प्रमाण क्या काम आया ? सिवाय धोखेके और कुछ भी नहीं है ? क्योंकि स्थूल पदका अर्थ ज्यादह यह आपने आपने घरकी डालदिया है जो कि आपकी विद्वत्ताकी एक बडी भारी निशानी है. क्यों पंडितजी साहिब स्थूल पदका ठीक यही अर्थ है जोकि आपने किया है ? यदि यही अर्थ है तो क्या आपके स्वामीजीका और आपका जो यह ख्याल है कि ईश्वरने सूक्ष्मसे स्थूल सृष्टि बनाई सो स्थूल - शब्दसे आप यही अर्थ लेते होगे कि ईश्वरने बहुत ज्यादह सृष्टि बनाई ! यदि ऐसे न मानोगे तो फिर आपका किया अर्थ गधेका शृंग हो जावेगा ॥ इस अवसर पर हम अफसोस जाहिर करे बिना रह नहीं सकते कि एक तरफ तो लाला लजपतरायजी साहिब आदि लायक साक्षर महाशय देशोन्नति के लिये इत्तिफाक करने के लिये ठिकाने ठिकाने उपदेश दे कर अपना उत्तम विचार लोगोके दिलमें जमा रहे हैं और एक तरफ पंडित शंभुदत्तजी, पंडित चंद्रभानुजी, पंडित मुरारीलालजी साहिब वगैरह आर्यसमाजकेही ऊपदेशक हर एक मत के मानने* देखो अखबार हितकारी माह दिसंबर १९०४ ११

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