Book Title: Jain Shwetambar Conference Herald 1905 Book 01
Author(s): Gulabchand Dhadda
Publisher: Jain Shwetambar Conference

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Page 394
________________ १९०५] जैसलमेर पुस्तक भंडार. शेठ लालभाई दलपतमाईके श्रमसे कइ पाठ शालायें और कन्याशालायें खुल गई है. राजपूताना में ऐसी शालावों की बड़ी भारी आवश्यकता है और सबसे पहिले आप साहकोंको इस तरफ लक्ष देने की जुरूरत है, ___ जिस तरह विद्याके प्रचारमें कोशिश की जाती है, वैसेही जीर्ण पुस्तकभंडारोंकी लवाकर उनका उद्धार कराया जाता है और मन्दिरोंकी मरम्मत तथा पूजा वगरहको प्रबन्ध किया जाता है. हानीकारक रीति रिवाजमें अन्य तीर्थयोंके त्योहारको मानना, "विवाहके समय व्यर्थ खर्च करना, आतशबानी छोडना, वेश्यावोंका नाच कराना, 'बाल लग्न और वृद्ध लन करना, कन्याका पैसा खाना, नुक्ता करना, सोग संताप जियादा रखना या छाती माथा कूटा, जैन विधिके मुवाफिक शादीका नहीं करना इत्यादि शामिल हैं-इन सबके सुधारेकी कोनफरन्सकी कोशिश है. मेरे इस कथनसे आप साहबोंको स्पष्ट रीतिसे मालूम होगया होगा कि कोनफरन्समें आप और हम सब शामिल हैं, कोनफरन्स अपनी कोमी समाज है जिसमें अपने प्रतिनिधि इकठे होकर अपनी उन्नत्तिके विचार किया करते हैं. बस आपका और हमारा और कुल जैन समुदायका फर्ज है कि इस हितवर्धक महासभाकी उन्नति हरतरहसे करें और इसके आश्रयसे अपना कल्याण करें, जैसलमेर पुस्तक भंडार. जैलसमेरके पुस्तक भंडारके खुलवाने और उसके अंदरकी पुस्तकों की टोप करनिके समाचार इस पत्रद्वारा हम पहिले प्रगटकर चुके हैं. यह प्राचीन भंडार किलेके अंदर है और इसके सिवाय शहर के उपासरोंमें कई और भंडार हैं. किल्लेके भंडारकी टीप तय्यार होनेके पश्चात् शहरके अन्यभंडारों की टीप और जीर्ण पुस्तकोद्वारके विश्वयमें मतभेद होनेसे कोनफरन्सका पंडित हीरालाल कई महीनोंते जैसलमेर बैठा हवा था और जनरल सेक्रेटरी मिस्टर ढढा और पंचान नैसलमेर. इस मामलेमे एक अरसेसे पत्र व्यवहार हो रहा था कि इतनेहीमें रतलाम निवासी शेठ बांदमलजी जैसलमेर पहुंचे. उक्त सेठ साहब तथा ठाकुरां शिवदान सिंहजी की सहायतासे अब पंचान जैसलमेरने शहरके उपासरोंके भंडारों की टीप भी कराना मंजूर कर लिया है, .. . - हरकचंदजी जिन्दानी, सुगनमलजीबांफणा, मांगीलालनी संघवी, रतनलालजी महला, सागरमलनी पारख, हीरालालजी सावण मुखा, नथमलजी भंसाली, नवलमलजी तिलाली,

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