Book Title: Jain Shwetambar Conference Herald 1905 Book 01
Author(s): Gulabchand Dhadda
Publisher: Jain Shwetambar Conference

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Page 395
________________ ३६२ जैन कॉनफरन्स हरेल्ड. [नवेम्बर केसरीमलजी पटणी, चुन्निलालजी जिन्दानी, भूरामलजी बहोरा, दानमलनी बागचार, हजारी मलनी कोठियारी, चुन्निलालजी बडेर, लालचंदनी फोफलीआ, चन्दनमलजी बरहीया, रतन लालजी गांधी, राजमलजी चोरडीया, और मगनलालजी तातेडकी सहीके साथ पंचान जैसलमेर- आसोज बुदि ४ सम्वत १९६२ का लिखा हवा पत्र हमारे नाम पर भेजा है. उसका सारांश यह है कि जैसलमेरके संवको कोनफरन्सके जो जो साधारे के काम है, उनकी कोशिशमें इनकार नहीं है; सब समुदायकी सलाह लेनमें किसी काममें देरी होनावे तो उसको और तरह पर खयाल न करें; लिखारियों (लेखकों ) के लिये मन्दिरोंके पास ही किलेपर तजवीज की गई है. उनको एक दो मोतविर शोंकी निगरानीले पप्तकें और खुले पाने दिये जायेंगे, लिखारियों को अखतियार है कि चाहे जिस वक्त पुस्तकोंका मीलान करें, इस सूरतमें पुस्तकोंको किलेसे नीचे लानेकी जुरूरत नहीं है गरज कामसे है सो होहीगा; और जो पुस्तक जीर्ण होगई है उसकी नकल भी दुबारा होकर भंडार) रखना हाल और आयंदा के जमानेमें हितकरी होगा इसलिये निहायत जुरूरी और मुनासिब है कि कोनफरन्स मंजूरी देवे और लिखारियों ( लेखकों) को हिदायत कर दीनावे कि इसकी मालकी श्री संव जैसलमेरकी है; और जिनजिन पुस्तकोंकी नकलों की कोनफरन्स को जुरूरत हो लिख भेनें सो कराकर भेजदी जावे और नीचेकी टीप ( शहरके भंडारोकी टीप) का काम पण शुरू करा दिया जावेगा; और इनमें से जो पुस्तक पहिले छप गये हों वहतो कोनफरन्सकी मरजी पर है छपवावें या नहीं ( छपवावें ) परन्तु जो पुस्तक इनमें से नहीं छपे हैं उसके लिये श्री संघका ऐसा लिखना है कि नहीं छपाई जावे क्यों कि इसमें असातनाका कारण है, जुरूरत हो तो लेख करा दिया जावे ( नकल करा दी जावे ? ); इसकी निगरानी के लिये जो शक्ष मुकर्रर किया जावेगा उसकी तनखुहा जिमे फोनफरन्स के रहेगी। जीर्णोध्धारका काम शुरू होतेही नीचेके उपायोंकी लिस्ट होना शुरू होजावेगा; श्री संघ जैसलमेरको धर्मकी उन्नति और सुधारेके कामों में पूरा खयाल है, किसीना आकबत अंदेशकी तरफसे कोई रोक टोक हुई तो श्री संवका जो फर्ज था अदा किया और आयंदा भी करता रहेगा मगर हरने व खर्चेका जिभेवार श्री संघ जैसलमेर आपही खयाल करें कैसे हो सकता है. इसके सिवाय किलेपर जो मन्दिर हैं उनका सालाना खर्च दो हजार रुपयों का है और इस जमाने में खर्च पूरा पड नही सकता है इस वास्ते कोनफरन्ससे मदद होना जरूरी है. जैसलमेरके श्री संघके फाके सारांशसे मालूम हो सकता है कि श्री संघ जैसलमेर में वाकई कोनफरन्स अर्थात भारत वर्षिय जैन समुदायके ऊपर बड़ा भारी उपकार किया है क्यों कि जिस भंडारने प्राचीन कालमें शायदही हवा और रोशनीका फायदा उठाया

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