________________
३०० जैन कोनफरन्स हरेल्ड.
[ सप्टेम्बर जमा
------ - खर्च .४४२११०) बाकी देना कार्तिक सुदि १ ७८॥)।कार्तिक सुदि सम्वत १९६१ सम्बत १९६० तक
तक तनखुहा पुजारी व मर८६)॥ कार्तिक सुदि १ सम्वत .
म्मत वगरहमें १९६१ तक आमदनी:- ४६८६।।)। बाकी देना कार्तिक सुदि १ फुटकर, भाडा मकानका साल
सम्वत १९६१ तक ३६)॥ ५०). १ का .
४७६५)un २५६॥1) कार्तिक सुदि १ सम्वत
१९६१ तक व्याज प्रत laull
४७६५०) मिति भादों सुदि ५ सम्वत १९६१ से श्री मन्दिरजीकी आमदनी सेठ अमोलकचन्दनी छोगमलजी कन्देलीवालोंके यहां जमा होती है और दो मरतबा ( बार ) रु. ४००) हमारे पाससे गये हैं जिसका हिसाब सेठ साहब मोसुफ जाहिर करेंगे. खर्च मामूली श्री मन्दिरजीका हमारे पाससे दिया जाता है जिसका हिसाब अखीर साल पर जाहिर किया जावेगा.
जैन श्वेताम्बर ग्रन्यूएट्स ऐसोसिएशन के प्रसिडेंट
मिस्टर गुलाबचन्दजी ढाका प्रयास. __ जयपूर रियासतके मालपुरा नगरमें पहिले २७ श्वेताम्बर मन्दिर थे परन्तु समयके फेरफारसे इस वक्त सिर्फ २ मन्दिर बाकी रह गये हैं. उनमेंभी अबतक पूजा वगरहका कुछ प्रबन्ध नहीं था उस नगरके श्रावक पूजा वगरहकी कुछ विविभी नहीं जानते थे, दरशण करने तकको बहतसे श्रावक नहीं जाते थे. प्रतिमाओंकी प्रक्षाल पूजाका कुछ इन्तजाम नहीं था. सेवग लोग स्वइच्छानुसार गीलेरेजीके मोटे कपडेसे प्रभूका अंग साफ करके चन्दनकी टीकी चर्णोपर लगा देते थे. रेत धूल पावटीपर और कई अन्य स्थानोंपर जमकर प्रतिमावोंका स्वरूपही कुछ औरसे और दिखता था. आरती वगरह कुछ नहीं होती थी. मगर मिस्टर ढहाके मालपुरा आनेपर दोनों मन्दिरोंमें पूजाका इन्तजाम शुरू हुवा और करीब रुपये १२५) सालानाके खर्चते केसर, चन्दन, धूप, दीप, वगरहका प्रबन्ध किया गया. श्रावक लोगोंको प्रतिदिन पूजा करनेका नियम कराया गया और उनको पूजा करनेकी विधि सिखलाई गई. अब दोरों पन्दिरों श्रावक लोग