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मुनि विहारके दोहे. श्रोत जननके मननमें, तुरत हि ज्ञान दिनेश; उदय होय निर्मूल किय, संशय तिमिर अशेष. - ४ सुन जिनके उपदेशकी, रचना परम विचित्र जैन बैष्णव उभय छल, छोड भये सब मित्र. ५ परम धर्म सब धर्ममें, जैन धर्म मन मान; जैन वैष्णव जननने, कीन्ह बहुत सम्मान. सब मिल मुनिपद कमलमें, करण लगे बहु प्रेम अरु शिक्षा अनुसार सब, करण लगे व्रत नेम; कंद मूल निशि अशन अरु, सप्त व्यसन पचखाण; प्रणकर पुनि स्वीकृत किया, पावेंगे जल छाण. मुनिजीके आगमनसे, हुआ अमित उपकार; धन्य २ संसारमें, श्री मुनिराज बिहार. मुनि बिहारसे जगतमें, होत बिबिध उपकार; सो अब बरणन करत हूं, मनमें शोच विचार. १० मुनि बिहारसे होत है, बिदित सकल कुलधर्म; बिज्ञ होय कर जीव पुनि, करण लगे शुभ कर्म. ११ मुनि बिहारसे जगतमें, सुधरै जीव अजाण; करण लगे सुन्दर करम, निज कुलधर्म पिछाण. १२ करै भ्रमण संसारमें, सदा साधु मुनिराज; तो निश्चय पुर २ विषे, बाढ़ जैन समाज. मुनि बिहारसे हार यदि, बैठे आसन मार; तो बिलकुल नहीं हो सके, दुनियोंमें उपकार. १४ जहें मुनिराज विहार कर, जैन धर्म उपदेश; कर हि तहाँ किर नहिं रहै, मृषा धर्मका लेश. १५ . जो सन्तत होता रहै, श्री मुनिराज बिहार; जैनधर्म उन्नति लहै, मिटे अन्य उपचार. . . १६