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पैथापुर कोम्फरन्स.
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तो कोई बडी बात नहीं है परंतु इस वक्त अगर उसका कायम होना सम्भव न हो तो जैनीयोंका बोर्डिंगहाऊस तो अहमदाबाद में होना जरूरी है कि जहांपर इस प्रांतके लड़के रहें और उनके खानपानकी तथा धर्मशिक्षा बदस्तूर जारी रहनेका प्रबंध कीया जावे इसही तरहपर दूसरा बोर्डिंगहाउस मुम्बइमें किया जावे और इस वक्त जो लालबागमें एक बोर्डिंग हाउस खोला गया है परंतु उसके उपयोगी होनेके वास्ते ज्यादा उम्दा प्रबंध की जरूरत मालूम देती है. अगर इस तरह पर प्रबंध किया जावेगा तो जिस सुस्ती के साथ इस वक्त तक अपनी संतानको तालीम मिली है वह सुस्ती स्वप्नक्त होकर बहुत ताकीदके साथ इल्मका फैलाव होना सम्भव है.
आजकलका जमाना वह आगया है कि जिसमें हुन्नर, उद्योग, कला वगरहको न सीखने से हृमको दुनीयादारीके मामलों में बहुत नुकसान पहुंचता है. कहावत है कि “फिरै सो चरै." अगर हम लोग एक जगहही सबर करके बैठे रहेंगे तो हमारी दशा खराबसे ज्यादा खराब होती जावेगी इसलिये इसकी आवश्यकता मालुम पडती है. इस विषय में उत्तेजन देना आप साहबोंकी मरजी और रायपर मुनहसिर है.
अपने धर्माचार्योंका हमेशा खयाल अपने फैलानेकी गरजसे आर्य अनार्य क्षेत्रों में भ्रमण करके स्वर्गस्थ श्रीमद्विजयानंद सूरीजीनें देशाटन करके राघवजी गांधीनें देशाटन करके अनार्य क्षेत्रमें अपने वह आगया है कि अपने धर्म और समाजकी उन्नत्तिके वास्ते खास मुनिराजों व सद्गृहस्थोंको इस मिशनके वास्ते तयार कीया जावे तो समयानुसार ठीक मालुम होता है. इसपर ज्यादा विवेचन करनेकी आवश्यकता नहीं हैं. यह सब बात आप साहबोंके विचार पर छोडी जाती है.
पुस्तकोद्धार.
निराश्रिताश्रय और केलवणीके साथसाथही पुस्तकोद्धारका विषय गोरतलब है क्योंकि निकटोपकारी श्रीमहावीरस्वामीके मोक्ष पधारे पीछे हम लोगोंका आधार उनकी प्रतिमापर और उनकी आगमारूढ बाणीपर है. अबलतो दोदकैके बारा बरसी काल पडनेसे बहुतसा ज्ञान नष्ट होगया फिर जो कुछ संचय कीया गया यह आपसके झगडोसे और मुसलमानी राजके जुल्मसे नाशको प्राप्त हुवा. बाकी रहाहुवा ज्ञान हमारे अज्ञानता और धर्मसे नष्ट होता है. अन्य धर्मियोंके हाथसे बचानेके वास्ते अपने बडेरोंनें जैसलमेर, पाटन, खंभात बंगरहमें पुस्तक भंडार कराये थे अब उनका भय तो मिटगया लेकिन घरहीमें न्हार पैदा होगया उसका क्या इलाज कियाजावे. उसवक्त जिनजिनकी सिपुर्दगी में अपनी अमूल्य पुस्तके दीईथी अब उनहोंने ऊनपर ममत्वभाव रखछोडा है और न खुद देखकर सार संभालकी ताकत रखते हैं न दूसरोंसे सार संभाल करना बरदाश्त करते हैं यहांतककि वह अपूर्व ज्ञान जिसका २ अमूल्य है और जिसकी खामी इस जमानेमें पूरी नहीं होसकती है; उधई और कीडका भोग होगया है . इसलिये यह विषषभी ज्यादा गोरतलब है और मैं आशा करता हूं कि आपलोग इस बातपर पूरा लक्ष देकर जलदी चेतोगे.
धर्मकी फिलॉसफीको तरकी देनेका रहाहै और धर्मके बहूतसे प्राणीयोंपर उपकार कीया है. जमाने हालमैं पंजाबमें सुधारा किया है. मरहूम मिसटर वरिचंद्र धर्मकी फिलॉसफीकी छाप जमाई है. अब समय