Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha Part 2
Author(s): Vijaymurti M A Shastracharya
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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जैन-शिलालेख संग्रह अनुवाद-वर्ष ८१, वर्षाऋतुका १ ला महीना, ६ ठा दिन, इस दिन, अयिका जीवा (आर्यिकाजीवा) की शिप्या दत्ताकी प्रार्थनापर ग्रहशिरि (ग्रहश्री) ।
[DI, II, n° XIV, n° 21]
मथुरा-प्राकृत।
[वासुदेव ] वर्ष ८३ १ सिद्ध महाराजस्य वासुदेवस्य स ८० ३ गृ २ दि १०६ एतस्य पूर्वये सेनस्य
२ [घि] तु दत्तस्य वधुये व्य "च स्य गन्धिकस्य कुटुम्बिनिये जिनदासिय प्रतिमा ध [ मैदान
अनुवाद-सिद्धि हो । महाराज वासुदेवके राज्यमे ८३ वे वर्षकी ग्रीष्मऋतुके दूसरे महीनेके १६ वै दिन, सेनकी पुत्री, दत्तकी बहू , गन्धिक (तेल, इन बेचनेवाले) व्य-च. की पत्नी जिनदासीके पवित्रदानमे एक प्रतिमा ....।
[1A, XXXIII, p 107, n° 21]
मथुरा-प्राकृत ।
[हुविष्क वर्ष ८६] १ स ८० ६ हे १ दि १०२ दसस्य धितु पृयस्य कुटुबिनिये
२ . [क] तो कुलतो अयस [२] मि [क] य शिशिनिय अयवसुल [ ये ] नि [व] तने [1]
अनुवाद-८६ वें वर्षकी शीतऋतुके पहले महीनेके १२वें दिन, दस (दास) की पुत्री, पृय (प्रिय) की पत्नी ... • का दान अर्पित किया गया। यह दान [ मेहि ] क कुलकी अर्य सद्गमिकाकी शिष्या अर्य वसुलाके कहनेसे हुआ।
[EL, 1, n° XLIII, n° 12]