Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha Part 2
Author(s): Vijaymurti M A Shastracharya
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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होन्वाडका लेख
२२७
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अगडि-कन्नड़ [शंक ९२४, वर्ष जय (ठीक शक ९७६=१०५४ ई.) लूई राइस] [भङ्गडि (गोणीबीड परगना) मे, बसदिके पासके पाषाणपर ]
खस्ति सक-वर्ष ९२४ नेय जय-संवत्सरद चैत्र-मासद सुद्धदशमी " ....."वार पुष्य नक्षत्रदन्दु विनयादित्य-पोयसळन राज्य प्रवर्तिसे सूरस्त-गणद श्री-वज्रपाणि-पण्डित-देवर "गन्तियरप्प जाकियब्वे-गन्तियर् (पीछे ) सोसवूरोळे नाडे पोपणद दिसेयनरसग्नें वोकल्ग पोन्नरे को? मण्णरेकोण्डु सोसवूर-वसदिगे बिट्टर निसिदिगे यडेवळ्ळेय - पूण आरतारगे एरडु-हळ्ळद मेगण गण्ण नाल्कु मकर-जिनालयके विट्टर (हमेशाका अन्तिम श्लोक)
[(उक्त मितिको) जिस समय विनयादित्य पोयसळका राज्य प्रवर्त्तमान था-सूरस्त-गणके वनपाणि पण्डितकी शिष्या जाकियध्वे-गन्तिने सोसदूरमे नाड्की ओर जानेवाली दिशाम निवासस्थानके लिये पूरा रुपया राजाको देकर और पूरी जमीन लेकर उसे स्मारकरूप सोसवूरकी 'पसदि' के लिये छोड़ दिया । और यडेवळ्ळे की ण्णने दो खड्डो ( ravines ) के ऊपर चार गण मकर-जिनालयके लिये दिये।।
[EC VI, Mūdgere ti, no 9]
१८६ होन्वाड-संस्कृत तथा कन्नड़
[शक ९७६=१०५४ ई० सन् ] ॐ [1] भद्रमस्तु जिनशासनाय सभद्रता प्रतिविधानहेतवे ।
अन्यवादिमदहस्तिमस्तकस्फाटनाय घटने पटीयसि [1] १ शक ९२४ जय वर्ष दिया हुआ है । लेकिन शक ९२४ प्लव सवत्सर है, जय शक ९७६ है, और यही ठीक मिति मालम पडती है।