Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha Part 2
Author(s): Vijaymurti M A Shastracharya
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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पुरलेका लेख कुरुळिय तम्म गौडिकेयं कलियर-मल्लि-शेट्टि मारं कोण्डु अरसर सन्निधियलु पाळचन्द्र-देवर्गे धारा-पूर्वकं माडि विट्टरु ॥ ___ मत्त सिरियम-सेट्टियुमातन मकलु'""आतन गौडि केय ननियरस-देव हळवुरदल बाळचन्द्र-देवगर्गे धारा-पूर्वक माडि कोहरु ।। अन्तुभय-ग्रामद"...."साम्य सुन सहित सर्व-वाधा-परिहार ........... (भागेकी ५ पक्तियोमे सीमाओकी चर्चा तथा हमेशाके मन्तिम श्लोक हैं)
[जिनशासनकी प्रशंसा । जिस समय त्रिभुवन-मल्ल-देवका राज्य प्रवर्धमान था;
आगेके श्लोकका प्रकरणसे कोई सम्बन्ध नहीं है, सिवाय इसके कि विक्रमांकने, जो कि त्रिभुवन-मल्ल है, बहुत भय उत्पन्न किया।
तत्पादपद्मोपजीवी एरेयग होयसळका दामाद हेम्माडि-अरस था। उसकी प्रशंसा।
होयसल राजाओंके वंशकी प्रशंसा । विनयादित्यसे लेकर नरसिंह तकके राजामोंकी परम्परा।
मूलसंघके मेष-पापाण-गच्छके क्राणूर-गणका एक जैनमन्दिर राजा हेम्मने बनवाया।
जिस समय प्रताप-होय्सल-नारसिह देव दोरसमुद्रमे राज्य कर रहा था-उसका प्रधान मंत्री (प्रशसासहित ) तिप्पण भूपति और उसका छोटा भाई नाग-चमूपति था, जिसकी पत्नी चामल-देवी थी। उसने .. .. का दान किया।
पश्चात् इक्ष्वाकुवंशका अवतार दिया है । इस भागकी १७० पक्तियोंमें पूर्वके शिलालेख न० २७७ और २६७ के भाग ज्यो-के-त्यो मिलते हैं । न० २७७ "सले वृषभतीर्थ-काल" से लेकर “परावृत-गनवाडितोम्भत्तरसासिरं" तक १०१ पंक्तियाँ, और "अन्तु शत-जीवियेम्बुदा-शव्दमं केल्दु" से लेकर "मे-शैलोपमानम्" तक ५ पक्तियाँ। नं० २६७ "कर "अरिद गङ्गानि भय-" से लेकर "रकस गङ्गम्" तक ११ पक्तियाँ । नं० २७७ "अवयवदिन्दे' से लेकर राज विद्याधरेन्द्रम्" तक ८ पक्तियाँ। नं० २६७ "इन्तेनिसि नेगल्द" से लेकर "अनन्तवीर्यसिद्धान्तकरम्" तक ४५ पंक्तियाँ।