Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha Part 2
Author(s): Vijaymurti M A Shastracharya
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 426
________________ हळेबीडका लेख समरायाताहित-क्षोणिभृदतुळबळोद्यानदोळ् पावकानु- । क्रमदिन्दं क्रीडित्तु रिपु-नृपति- शिरः- कन्दुकक्रीडितं तत्समयोद्भूतारुणाम्भो - भरित-समर-धात्री - सरो-मध्यदोळ वि- । क्रम-लक्ष्मी-लोलनोला डुवनेरेद-बुधप्प दण्डेश-वोप्पम् ॥ लोभिगळं पोलिपुदे य- । शो-भाजननध्प बोप- दण्डेशनोटिन् । ई-भू-भुवनदोळाहा- । राभय-भैषज्य - शास्त्र दानोन्नतियिम् ॥ ४७७ तदीय-गुरु-कुलम् ॥ गौतम गणधररिन्दा-यात- परम्परेय कोण्ड कुन्दान्चय-वि-ख्यातमलधारि-देवर । पूत- तपोनिधिगळा - मुनीश्वर - शिष्यर् ॥ श्री-राद्धान्तसुधाम्बुधि- पारग-शुभचन्द्र-देव-मुनि पर्व्विमळा- चार-निधि-गङ्ग-राजन | धीरोदात्ततेयनान्द बोप्पन गुरुगळ् ॥ जिन-धर्म्म- वनघि-परिवर्द्धनचन्द्रं गङ्ग-मण्डलाचार्य्यर्-पावन-चरितरेन्दु पोगळ्वु [दु] जनं प्रभाचन्द्र-देव-सैद्धान्तिकरम् ।। इवप्प-देवन देवतार्च्चन- गुरुगळ् ॥ जळजभवङ्गविन्तु वरेयल् कडेयल करुविट्टु गेय्यल - । वेनिपुद तोळप वेलिय- बेने पोल्वुद जगत्- | तिलक मनी - जिनालयमनेत्तिसिद विभु चोप्प - देवन- । गयि राजधानिगळोळोप्पुव दोरसमुद्र - मध्यदोळ् ॥ गङ्ग-राजने परोक्षविनयवागि देवर्गे । सासिर देवत्तैन -ला-शकनद्व प्रमादि - माधव - बहुळ । श्री-सोमज - पश्चमियो-कैसेने बोप्पं प्रतिष्ठेयं माडिसिदम् ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455