Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha Part 2
Author(s): Vijaymurti M A Shastracharya
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 443
________________ ४९५ २१३ २६७ १ १८ २१ २४१ चोळप २२५ १४४ बागल-देवि १९८ | चिक-वीर-शान्तर ! २१३ चागि २१३ | चिण्ण २९३ रागि-समुद्र | चित्रकूट २७७,२९९ चागिसान्तर चीरे चाङ्कणार्य चुच्चेवायदाङ्ग वाकिमय्य चुलुक्य १०८ चाङ्गळ (वसदि) चेटिय चाशिराज चेतराज चाणक्य ५१,१०६, चाण्डराय १८ चोक १७०,२१३,२९३, चान्द्रायणदभटार चोल १०६,१०८,११४,१७१,१७२, १५० चान्द्रायणीदेव २०४,२९७,३०१, चामण्ड चौण्डसे २६४ चामराज चामलदेवि जकवे २९४ चामुण्डपै २१७ चामेकाम्बा १४४ जकय्य २३६ चालुक्य १०६,१०८,१०९,११४, जकि १९३ १२२,१२३,१२४,१२७,१४३,१४४, जक्यिन्ने १४०,१८३,२१३ १६०,१८६,१९८,२०४,२१०,२१७, जकि सेटि २७४ २१८,२२७,२३७,२६७,२९९ जविलियोळ १४० चालुक्यमीम १४३ चालुक्य-विक्रमादित्यदेव जगत्तुंग २७७ चावण जगत्तुङ्गदेव १२७ चावुण्डमय्य जगदुत्तरङ्ग चिनकूटान्नाय २०८ जगदेकमलदेव २०४ चिर्दै | जगदेकमलवादिराजदेव २४८ चिकाये १३७ । जजाहुवि १८१ १७४ जब्बे २८८ २१७ २१३ २१३

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